Monday, October 26, 2009

डायरी

मैं जिस डायरी में
लिख रहा हूँ
यह कविता
यह तुम्हरी है ।
इस डायरी की तरह , कभी
मैं भी
तुम्हारा हुआ करता था ।
आज न यह डायरी तुम्हारे पास है
और
न ही मैं तुम्हारे पास हूँ ।
इस डायरी को
जब छोड़ा था तुमने मेरे पास
खाली था इसका हर पन्ना
बिलकूल मेरी तरह ।
इस डायरी का हर पन्ना तो
मैंने भर दिया है
लिख -लिख कर कवितायेँ
किंतु
मैं आज भी खाली हूँ
बिलकूल पहले की तरह .

6 comments:

  1. बहुत बढिया शैली पसंद आई,आगे भी लिखे, स्वागत है
    आप का स्वागत करते हुए मैं बहुत ही गौरवान्वित हूँ कि आपने ब्लॉग जगत मेंपदार्पण किया है. आप ब्लॉग जगत को अपने सार्थक लेखन कार्य से आलोकित करेंगे. इसी आशा के साथ आपको बधाई.
    ब्लॉग जगत में आपका स्वागत हैं,
    http://lalitdotcom.blogspot.com

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  2. हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं.....
    इधर से गुज़रा था, सोचा सलाम करता चलूं

    www.samwaadghar.blogspot.com

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  3. साधारण शब्दों में बहुत गहरी रचना ।
    साधुवाद स्वीकारें ।

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  4. Very nice ..... Khalipan ke ahsas ko bakhubi ubhara hai aapne

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  5. kya baat kahi hai...bahut hi achhi kavita...

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  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...