Wednesday, September 23, 2009

अभ्यास पुस्तिका

मै तुम्हारे साथ रहा
तुम्हारे जीवन में
किंतु
एक अभ्यासपुस्तिका की तरह
तुमने लिखा फिर
मिटाया
फिर लिखा
फिर मिटाया
अब
पुस्तिका फट गई है
पन्ने भी भर गए हैं
अब
तुम्हे एक
नई पुस्तिका चाहिए
पुनः अभ्यास के लिए /

Monday, September 21, 2009

जिसे कभी देखा था

मटमैले रूप में
सड़क के किनारे
जिसे कभी देखा था
सर्द मौसम में
जिसका तन आधा ढका था


उसका  पेट
पीठ सठा था
वह आया था
इस शहर में
काम की तलाश में
उस पर अपने
परिवार का बोझ था
उसे कोई काम नही देता था
उन्हें शक था ,
वो एक चोर है


मंदिरों में उसका प्रवेश
मना था क्योंकि
वह निम्न वर्ग का था


उसके चहरे पर
बेवसी का चित्रण था
कल की सर्द रात में
फूट पाथ पर सोते हुए
एक अमीर जादे ने
 जिसे कुचला
 वही गरीब था //

Sunday, September 20, 2009

तस्वीर

वो तस्वीर में मुस्कुरा रही थी

उस तस्वीर में

मै भी था उसके साथ

यह उस वक्त की तस्वीर है

जब हम रहते थे साथ -साथ

हँसते थे ,रोते थे

साथ -साथ

अब नही हँसते

अब नही रोते

नही रहते

साथ - साथ

सिर्फ़ उस तस्वीर में

रह गए हैं हम

साथ - साथ

वो खुश थे

मै खुश था

जब दोनों थे

साथ - साथ

वो तस्वीर , जो

गिरी अचानक

मेरी एक फाइल से

जिसे मैंने छुपा रखी थी ज़माने से

उस तस्वीर में उसने

मुझे पकड़ रखा है

वाहों में

कितनी मजबूती से

सिर्फ़ मुझे ही मालूम है

और उसे जिसने

मुझे पकड़ा है उन वाहों में

पता नही फिर कैसे छूटा

मैं उन वाहों से

मालूम नही क्या हुआ

किंतु

सच है

आज भी हम साथ हैं

सिर्फ़ उस तस्वीर में

जो गिरा था कल

जमीन पर

मेरे एक फाइल से .

सूखा रेत

तुम्हारे बाद
अब
मेरी भी सोच बदलने लगी है
अदालत में खड़ा
एक भाड़े की गवाह की तरह
पता नही, अब
मै कब क्या बोल जाऊँ
मै भी अब रुख बदलने लगा हूँ
मेरे शहर में चलती हवाओं की तरह।
रात के बाद
दिन भी कटता हूँ , मै
सोच बदल बदल कर
अब मेरा कोई भरोसा नही
जो था ,
टूट गया कांच की तरह
सोचा था पाषाण हूँ लेकिन
ख़ुद को पाया सूखे रेत की तरह
आज-कल टुकडों में जी रहा हूँ.

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...