मेरे आंगन में
अब चिड़िया नहीं आती
दाना चुगने
शायद उन्हें पता चल गया है
महंगाई का स्तर
और मेरी हालात का .
मेरे आंगन में
नीम का जो पेड़ था
पर्णहीन हो चुका है अब
सदा के लिए
मेरा आंगन अब
बंज़र हो चुका है .
झरने अब गीत नहीं गाते
पहाड़ो से गिरना रुक गया है उनका
उनके पहाड़ों पर
अब आदमी का बसेरा है .
तालाबों के मेढकों ने
"वीजा" पा लिया है
किसी दुसरे देश का
अब वे अप्रवासी कहलाते हैं .
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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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बहुत सुन्दर मनुष्य की करनी को बहुत ही सुन्दर सहज शब्दों में पिरोया है आपने ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मनुष्य की करनी को बहुत ही सुन्दर सहज शब्दों में पिरोया है आपने ......
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