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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
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वे सारे रंग जो साँझ के वक्त फैले हुए थे क्षितिज पर मैंने भर लिया है उन्हें अपनी आँखों में तुम्हारे लिए वर्षों से किताब के बीच में रख...
शुभकामनाएं...
ReplyDeleteThank you Amrita Tanmay Ji.
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत, बधाई.
Deleteati sundar! bhavpurn rachna.badhai
ReplyDeleteधन्यवाद सुनीता मोहन जी .....
ReplyDeletethe cndition of city is like a woman
ReplyDeleteसच एक अनदेखा दर्द छुपा है शहर का ...
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