Tuesday, March 26, 2013

होली और तुम्हारी याद


वे सारे रंग
जो साँझ के वक्त फैले हुए थे
क्षितिज पर
मैंने भर लिया है उन्हें अपनी आँखों में
तुम्हारे लिए

वर्षों से किताब के बीच में रखी हुई
गुलाब पंखुड़ी को भी निकाल लिया है
तुम्हारे कोमल गालों के गुलाल के लिए


तुम्हारे जाने के बाद से
मैंने किसी रंग को
अंग नही लगाया है
आज भी  मुझ पर चड़ा हुआ है
तुम्हारा ही रंग
चाहो तो देख लो आकर एकबार
दरअसल ये रंग ही
अब मेरी पहचान बन चुकी है

तुम भी  कहो  कुछ
अपने रंग के बारे में ....

7 comments:

  1. अतीत के रंग में एक नया रंग डालतें नियानंद जी एवं उनकी यह कविता एक अलग ही रंग को प्राप्त है जिसमे स्वयम के रंग को देखना है ।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से आप सब को सपरिवार होली ही हार्दिक शुभकामनाएँ !
    आज की ब्लॉग बुलेटिन हैप्पी होली - २ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. शुक्रिया बहुत -बहुत .

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  3. बहुत खूब ! विरह में रंग और आकर्हक लगता है !
    latest post धर्म क्या है ?

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  4. बहुत सुन्दर!
    आपको होली की शुभकामनाएं!
    http://voice-brijesh.blogspot.com

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  5. बहुत -बहुत शुक्रिया ब्रिजेश जी , सादर

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