Saturday, January 16, 2016

लौट कर मुझे तुम तक आना है

और आज फिर गीली हुई
तुम्हारी पलकें
विदा लेते हुए तुमने गले से लगा लिया मुझे
मैंने स्थगित कर दी
आज की यात्रा फिर
आज पहली बार नहीं हुआ
कि मुझे रुकना पड़ा
छोड़नी पड़ी अपनी यात्रा
दरअसल तुम समझे नहीं
कि मेरी हर यात्रा का अंतिम पड़ाव
तुम ही हो
लौट कर मुझे
तुम तक आना है |

No comments:

Post a Comment

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...