Monday, August 13, 2018

डरा हुआ हूँ उनसे जिन्होंने.....

मैं बहुत डरा हुआ हूँ 
किसी दुश्मन से नहीं 
किसी हमलावर से नहीं 
बल्कि उन लोगों से 
जो जीवित हैं 
किन्तु उनका ज़मीर मर चुका है 
डरा हुआ हूँ उनसे 
जिन्होंने अब भी चुप्पी साध रखी है 
और सबसे ज्यादा भयभीत हूँ 
उन कवियों से 
जिनकी कलम से गायब हो चुका है 
प्रतिरोध |

4 comments:

  1. https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/08/blog-post_14.html

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  2. क्या तकलुफ करें ये कहने में
    कि जो भी खुश हैं हम उससे जलते हैं।

    जॉन एलिया साब का ये शेर सहसा ही याद आ गया आपकी कविता पढ़ कर।

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत रहेगा

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  3. गहरी बात ...
    क़लम का रुक जाना भयभीत करता है ...

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इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...