Thursday, January 10, 2019

सबको सत्ता चाहिए

और इस तरह उसने संविधान में बदलाव कर दिया
इस हरकत में कथित विपक्ष में बैठे सभी ने उसका साथ दिया
सबको सत्ता चाहिए ,
संविधान की परवाह किसे थी , किसे है ?
सत्ता के लिए ही तो 
मंदिर-मस्जिद गोत्र -जिनेऊ देखने -दीखाने का सिलसिला शुरू हुआ है
प्रजा का क्या करें ?
वह तो उलझी हुई है बेमतलब के मुद्दों में,
बुद्धिजीवी लोग कहीं मेले में हांड रहे हैं ....
किसी मंच से कवि -राग गा रहा है
जन्तर-मंतर से संसद मार्ग तक कुछ चेहरे
जुलूसों के पीछे -पीछे चल रहे हैं
न्यायालय ने अपना अधिकार क्षेत्र निर्धारित कर लिया है
नगर की दीवारों पर लगे पोस्टरों पर
एक आदमी मुस्कुराते चेहरे के साथ
तमाशा देख रहा है
गौशाला से गायें आधी रात में रंभाती या
रोती हुई दिखाई देती हैं
शासन ने अपने सांड़ों को सड़क पर उतार दिया है
राजा के सिपाही मुस्तैदी से लाठी को तेल पिला रहे हैं

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...