Monday, December 17, 2012

बहुत जरुरी है अंधरे का होना

बहुत जरुरी है 
अंधरे का होना 
ताकि अहसास हो हमें 
रौशनी की कीमत 

सन्नाटे में ही 
पता चलता है 
चीख की पीड़ा 
आवाज़ के गुम होने पर ही 
आदमी खोजने लगता है 
एक -एक शब्द ...

Sunday, December 9, 2012

मुस्कुराते हैं खिले हुए कमल

पगडंडियों से गुजर कर 
आता है मेरा गांव 
तालाबों के बीच 
फलदार दरख्तों से घिरा हुआ 
मिट्टी का घर 
रोज लिपा जाता है गोबर से 
मुस्कुराते हैं खिले हुए कमल 
मछलियाँ करती है जलक्रीड़ा 
मिमियाते हैं बकरी के बच्चे 
विशुद्ध हवा के बीच 
कच्चे रास्ते से गुजरते साईकिल की घंटी की आवाज़ से
दौड़ पड़ते हैं बच्चे
बरफ वाला आया बरफ वाला आया
माँ से मांगते हैं पैसे

इन स्मृतियों के साथ बीत जाता है
मेरा दिन
महानगर की भीड़ में ....

Friday, December 7, 2012

कीचड़ में फंसे हुए नाव


मौली नदी* शांत थी
पांक पर थे बाघों के पंजो के निशान
रायदिघी घाट पर
सुस्ता रहे थे नाविक
कीचड़ में फंसी  हुई थी नाव

तृणमूल एम.एल.ए. के दफ्तर के बाहर
एक लम्बी भीड़ थी
रो रही थी एक औरत
लोगों ने कहा कि
कई चक्कर लगाए इसने
पर कुछ नही हुआ
यहाँ से सात किलोमीटर की दूरी पर है
खांडा पाडा , मेरा पैतृक गांव
यहाँ नापित पाड़ा में आज भी है अंधकार का राज
माईती लोग नही छोड़ते रास्ता

मैं फिर लौट कर जाता हूँ
मौली नदी के किनारे
देखने के लिए बाघों के पंजे ..

-नित्यानंद गायेन

*सुंदरवन से निकलने वाली एक नदी

Saturday, November 3, 2012

सम्पूर्ण पतन के बाद

वे सभी 
जो मूक हैं 
वक्त को बना कर जिम्मेदार 
छुपाया अपनी कमजोरी को 
और बने रहे चापलूस 

सम्पूर्ण पतन के बाद 
वे आयेंगे होश में 
खोलेंगे अपने द्वार 
लाशों पर चलकर आयेंगे 
एक दीपक जलाने को 
और बनेंगे जग के उद्धार ....?

Monday, October 29, 2012

बहुत कुछ कहती है ख़ामोशी

खामोश रेखाकार 
बहुत कुछ कहता है 
आँखों से 
जानते हो तुम 
आँखों की भाषा ?

नही , 
मैं नही कह रहा हूँ 
कोई पक्ष की बात 
केवल बयाँ कर रहा हूँ 
जो कुछ समझ पाया
झांक कर उनकी आँखों में

बहुत कुछ कहती है ख़ामोशी
आकाश से टूट कर गिरते तारे की तरह
वे मांगते हैं बंदकर मुट्ठी
अपने लिए दुयाएँ
क्या जाने ..
टूट कर बिखरने की पीड़ा ...?

ये सभी दानिश्वर हैं
लकीर की भाषा तो केवल
फ़क़ीर समझते हैं ....

-नित्यानंद गायेन
रायपुर ,27/10/12

Tuesday, October 23, 2012

केवल जला रहे हैं पुतलें .....




भीतर ही भीतर
हँस रहा है
एक रावण निरंतर

हम सदियों से
केवल जला रहे हैं पुतलें

अहंकार को मार न पाएं
ज्ञान हम ले न सकें
सिर्फ जलाते गये
पुतले ,

साल दर साल
बढ़ता गया रावण
फैलता गया

दस नही अब
हजारों -लाखों चेहरे वाले
रावण हैं समाज में
और, हम सिर्फ
पुतले जलाते गये ............?

Thursday, October 18, 2012

कुछ ने उन्हें दूर से देखा


आदमी -आदमी में
समाया हुआ है षड्यंत्र ....
बस पहनकर मुखौटा जाते हैं
आईने के सामने ...

कुछ ने उन्हें दूर से देखा .
कुछ ने कहा
आत्मा से मरे हुए लोग 

मैंने उन्हें जिंदा पाया 
भय के कारण 
दीर्घ साँस लेते हुए

Sunday, October 14, 2012

एक पैगाम प्यारी मलाला के नाम


प्यारी मलाला ,
मैं जानता हूँ 
अभी मूक पड़ी हो तुम 
किन्तु , मैं जानता हूँ 
सुन सकती हो तुम मुझे

तो, सुनो 
आज उठ रहे हैं करोड़ो हाथ 
दुआ में, तुम्हारे लिए |
खुल गई हैं लाखों जुबाने
तुम्हारे लिए |

तुम नाराज़ न होना
उन कायरों से
ये अक्सर
यूँ ही चुपके से करते हैं वार

तुम बस हिम्मत न हारना
क्यों कि, ये बस आगाज़ भर है
असली जंग तो
बाकी है अभी ................

Tuesday, October 2, 2012

इन्हें मालूम है तस्वीरें बोला नही करती ..


बापू ..
राज घाट पर
आज उन्होंने तुम्हें
पुष्पांजलि दी

बड़ी देर बाद
उन्हें तुम याद आये

जब भी हुआ
खतरा कुर्सी पर
लगा कर तुम्हरी तस्वीर
सभाएं की उन सभी ने
सत्ता के लिए
गांधीवादी घोषित किया
खुद को

तुम्हारी एक तस्वीर
इन सभी ने
लगा रखी है
अपने -अपने कार्यालयों में
वहीं बैठ कर
सरेआम इन्होने
चोरियाँ की

इन्हें मालूम है
तस्वीरें बोला नही करती ..

Wednesday, September 26, 2012

संवेनशील लोगों ने

हम सब 
संवेनशील लोगों ने 
लिखी ढेरों कविताएँ 
आत्महत्याओं पर 
और अर्पित किया 
अपनी श्रधांजलि 
मरे हुए लोगों को 

खूब किया हल्ला 
खूब हुए चिंतित 
हर एक मौत के बाद
पर हम लिख न पाए
एक भी कविता
उन्हें मौत से रोकने
के प्रयास में

संवेदनाएं जगती है हमारी
किसी की मौत के बाद ......

Friday, September 14, 2012

तेल पर खेल जनता झेल

तेल पर खेल 
जनता झेल 
पूंजीपति -सत्ता का 
गजब मेल 
महंगाई का है पेलम -पेल 
बना फिर कार्टून
चला जा जेल
मांगों न कोई बेल (जमानत )
भोजन ,पानी,बिजली
सबका मजा मुफ्त में ले
विरोध में
मानव सृंखला का
बना दे रेल

सरकार आज
बना साहूकार
देश मच गया हाहाकार ..

Tuesday, September 4, 2012

शिक्षक दिवस पर ..



Friday, August 31, 2012

कमाल हो तुम

बंदूक,
कुपोषण 
दंगे ,आगजनी 
नफ़रत 
इन सबके बीच रहकर भी 
तुम लिख लेते हो 
प्रेम कविता ....?
सच में कमाल हो तुम ....

Thursday, August 30, 2012

किन्तु फीका पड़ चूका है मेरा चेहरा ....


उन्होंने कहा
हम हैं भारतवासी
हमें गर्व है ..

मैंने कहा
मैं भी हूँ भारतवासी
और मुझे दुःख है , देखकर
कुपोषण के शिकार बच्चों की तस्वीरें 
सूखे शरीर ,चहरे पर झुर्रिओं के साथ
ज़हर के नीले रंग ढका हुआ 
या फिर फंसी पर लटकता किसान 

होगा तुम्हें गर्व
पर मुझे खेद है
सीखने, खेलने की उम्र में
मजदूरी करता बचपन
मेरे देश में 

चमकता होगा
तुम्हारा राज्य ,
और देश
किन्तु फीका पड़ चूका है
मेरा चेहरा .....

Tuesday, August 28, 2012

क्या भूल सकता है नाग डसने की कला ?

सदियों तक जो
शोषक रहे
बन बैठें आज मसीहा
ऐसा सम्भव है क्या
क्या भूल सकता है नाग
डसने की कला ?

वे सदियों तक 
दबाते रहे  हमें 
कुचलते रहें 
नकारते रहें हमारी नश्ल को 
पानी की तरह बहाया खून हमारा 
और खेलते रहे होली 

आज सदियों बाद 
विचलित हैं 
कि कैसे उठ खड़े हुए हम 
क्यों बनी थोड़ी पहचान हमारी 

नही ,नाग कभी नही भूलता 
डसने की कला 
बस हमें ही रहना होगा सजग 
और सावधान ...

Monday, August 27, 2012

आज के 'डेली हिंदी मिलाप' हैदराबाद में प्रकाशित मेरी एक रचना ....


छोड़कर गांव 
जो चले आये थे 
शहरों की ओर 
आज टूट चुके हैं
अपने सपनों के साथ

गांव में उनका मूल्य रखा गया था
अटठाईस मात्र
शहर में आकर हुए
केवल बत्तीस का
गांव ओर शहर के बीच उनकी कीमत
केवल चार रुपए ?

ये शहर
जहां चुकानी पड़ती है
कीमत हर साँस की
यहाँ जीवन टिका हुआ है नोटों पर
यहाँ रोज लगते हैं
करोड़ों के दावं
जिसमें बिकता है केवल आदमी
कैसे बचते सपने ?

हम चले आ रहे हैं
शहरों की ओर
आदर्श जीवन की चाह में
और उठा लिए जाते हैं
किसी जुलूस के लिए आये दिन

जल ,जमीन और जंगल
फिर सोचना होगा
गांवों की ओर हमें लौटना होगा ||

Sunday, August 26, 2012

दो कवितायेँ


     १.मेरा एक पत्र तुम्हें

प्रिय मुंशी जी , 

आपका 'होरी' आज भी
यहीं रहता है| 

शरत बाबू का 

गफूर भी जी रहा है

ब्राह्मणों के उस गांव में 

उसी हालात में 
अमीना और महेश के साथ
बस महेश अब किसी के 

खेत में नही घुसता 

सड़कों पर घूमता है आवारा




नागार्जुन अब भी सुना रहे हैं हमें 

बलचनमा की कहानी .
.
और बाबा बटेसरनाथ 

खो चूका है, अपना धड़

टाटा, अंबानी या किसी जिंदल के हित की पूर्ति में 



आप में से किसी का पता नही है मेरे पास 

फिर भी भेज रहा हूँ ये पत्र 

यदि मिल जाये किसी दिन 

कुछ लिखना जबाव आप सभी 



मेरा पता वही है 

जो आपका था कभी .....







२.मुल्क तो मेरा भी मासूम 



मुल्क तो मेरा भी मासूम 
और तेरा भी 
वही जमीं , वही आसमान
वही पहाड़ ,नदियाँ , झरने 
परिंदे ,हवा , पानी
फिर कहाँ से उग आये 
साज़िस भरे दरिंदों की भीड़

Friday, August 24, 2012

भागीरथी को देखकर

एक शाम बैठा था 
विशाल ,चंचल भागीरथी के किनारे 
निरंतर बहती जल धारा 
कहाँ से पाई है 
इसने प्रेरणा ?

उसके मध्यम लहरों को देख 
उठीं लहरें कई
मेरे भी मन में
ऊपर फैला नीलाम्बर
दूर तक
उसके आंगन में खेलते
शाम -श्वेत मेघों के टुकड़े
क्षितिज पर ढलता सूरज
एक क्षण नही भूलता
वह मनोरम दृश्य

नदी के मध्यम लहरों को
टूटते देख किनारे पर
मुस्कुरा उठा था
मेरा छोटा भाई
क्या सोचा था उसने ?

जमीं समा रही है
इस नदी के गर्भ में ,अहिस्ता -अहिस्ता
निरतंर लगी हुई है
अपने विस्तार में
सागर से मिलने को आतुर
मंद पड़ गई है
मुहाने पर आकर

दूर उस पार
कुछ बौने पेड़ों के साये
मुग्ध हो रहे थे
देख कर इसकी विशाल काया

अचानक विचलित हो उठा था
मेरा मन
सोचकर इस नदी का भविष्य
क्या यूँ ही बना रहेगा
इस जलधारिणी का यह भव्य रूप सदा ?

सहसा टूट टूट गई
मेरे मन की सारी लहरें
भागीरथी की लहरों की तरह .............

Tuesday, August 21, 2012

बड़ा ही भयंकर था गोधरा का सच

बड़ा ही भयंकर था 
गोधरा का सच 
पीढ़ी दर पीढ़ी 
सपनों में आकर डराता रहेगा हमें 
भूल न सकेंगे हम चाहकर भी 
भय के कण -कण में
समाया हुआ है गुजरात

पर ,मैं भूला नही हूँ
सैंतालीस ,पचहतर, चौरासी और हाल ही के
असम और मुंबई  को भी

मैं रखता हूँ इन सब को 
गोधरा के साथ
तुम सबकी सहमती
और असहमती के बाद ...

Monday, August 20, 2012

वो खुश था खिलाकर मुझे , अपने हिस्से की रोटी

आज मैं ३१ वर्ष का हो गया , दोस्तों ने शुभकामनाओं की ढेर लगा दी ..बहुत अच्छा लगा . आज ही एक  अनोखे अंदाज़ में मैंने ईद और जन्मदिन मनाया .आपके साथ साझा कर रहा हूँ ......
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Saturday, August 18, 2012

तुम भी बेचैन हो शायद ओ चाँद .

हर बार खोलता हूँ द्वार 
कि , हो जाये तुम्हारा दीदार
 
काले मेघों का जमघट 
हटा नही अभी 
तुम भी बेचैन हो शायद 
ओ चाँद ....

Friday, August 17, 2012

शामिल नही एक भी शहीद

इनके पास है 
देश भक्तों की एक लम्बी सूची 
शामिल नही एक भी  शहीद
ये सभी ...
जमीन ,इमारतें , नदी तालाब 
को ही मानते हैं देश 

इनके देश में नही रहते 
हम -तुम जैसे 
आम लोग ..

Saturday, August 11, 2012

तुम्हारे बिखराए शब्दों को

तुम्हारे बिखराए शब्दों को 
समेटकर , लगा दिया है मैंने 
पंक्तियों में डाल कर 
छंद बनाया है |
देखो एक नज़र 
बनी है कोई कविता 
या कोई मिलन गीत ?

यदि होते हम रेल पथ



यदि तुम
और मैं ,
बन जाते रेल पथ
दूरी रहती हमारे बीच
फिर भी , हम साथ –साथ चलते
मंजिल तक

हमारे सीने पर 
जब गुजरती
भारी –भारी गाड़ियां
हम साथ –साथ कांपते
पर , चलते साथ –साथ
मंजिल तक दर्द के अनुभवों के साथ

कोई कर्मचारी
आकर लगा जाता ग्रीस
हमारे जोड़ों पर
जंग से बचाने को हमें
हम साथ –साथ चलते
मंजिल तक ......||

Sunday, August 5, 2012

यशगान , अपने –अपने होने का

वे, जो गा रहे हैं 
यशगान , अपने –अपने होने का 
आर्य महान 
डूबे हए हैं घृणित कृत से 
सर से पांव तक |

ऊँची है इनके
कुँए की दीवारें

ये सभी
उबाल कर खाते हैं
दलित का, गरीब के हिस्से का अनाज |

रात के ..
कुकर्म के बाद
अर्घदान करते हैं रवि को
आकाश का सूरज मुस्कुराता है
इनकी बुद्धि पर
कभी –कभी मैं भी .....||

Saturday, August 4, 2012

साज़िस की जड़ें


बड़ी ज़हरीली होती हैं
साज़िस की जड़ें
बड़ी तेजी से फैल रही हैं , ये जड़ें
हमारे भीतर
हमारे खून में घुल कर
रूप बदल –बदल कर
कभी टी.वी. के रास्ते
कभी भोजन से होकर
फैशन के बहाने
कभी कपड़ों में लिपट कर
बाज़ार के रास्ते से
घुस चुकी हैं ,
हमारे समाज में
हम देख रहे हैं
चौखट पर खड़े , निहत्था 
असहाय योध्या की तरह .....

Thursday, August 2, 2012

मैं, बनकर एक माली संवार रहा हूँ तुम्हें .....

मैं रोज देखता हूँ सपना 
तुम्हारे लिए 
तुम सब मुस्कुरा रहे हो 
फूलों की तरह 
धरती के इस गुलिस्तां में 
और मैं, बनकर एक माली
संवार रहा हूँ तुम्हें .....

हे नन्हे फरिश्तों 
तोड़कर सब भेद 
तुम आना मेरे इस
सपनों के बगीचे में
करना साकार मेरे निष्पाप स्वप्न को
और ले जाना
अपने –अपने हिस्से की
मीठी –मीठी मुस्कान

Monday, July 30, 2012

मैं खोज रहा हूँ ,कविता

वे खोज रहे हैं 
कविता में शिल्प और सौंदर्य 

मैं खोज रहा हूँ ,कविता
किसान के खेत में 
मजदूर के पसीने में
बच्चों की हंसी में
उजड़ चुके जंगल में
सूख चुकी नदी में

सभी जगह मिली मुझे
शिल्पहीन कविता
सौंदर्य के नाम पर
मिली मुझे सिर्फ गहरी वेदना ...

Wednesday, July 25, 2012

बच्चों की हंसी

वे बच्चे 
जो, गवाह हैं
जंगल महल से 
हिरोशिमा, नागासाकी 
फिर वियतनाम से लेकर 
ईराक से अफगानिस्तान तक 
कभी 
मुस्कुरा उठे गर 
रोते –रोते
उस रात , चाँद भी हंसेगा शायद आकाश का

जिस दिन
विदर्भ , बस्तर
और देश के हर कोने से
बंद हो जायेगी
खाली बर्तनों की आवाज़
उस दिन खिल उठेगा
हर चमन में हंसेगा फूल

बंदूक की आवाज़ बंद होने पर
जब रातमें
चैन से सोयेगा
पूरा देश
और ..
मुस्कुरा देंगे बापू
राजघाट की समाधी से ...
मैं फिर पढूंगा भारतीय संविधान का 

तीसरा अध्याय ......

Monday, July 23, 2012

तुम इतनी टूट चुकी हो ...?


मैं , अक्सर
तुम्हे सोचता हूँ
खोजता हूँ
हवा में , पानी में
पहाड़ों में, जंगलों में
मिट्टी में
तुम्हे पाता हूँ
हर बार टुकड़ों में
हे प्रकृति
तुम इतनी टूट चुकी हो ...


सिमटकर रह गई हो
सिर्फ किताबों में ..?

दूषित हो चूका है 
जल ,वायु
मिट्टी खो चुकी है खुशबू
हार गए जंगल, लड़ते –लड़ते
तुम्हारे बनाये हुए इंसानों से

क्या फिर कभी मिलोगी
अपने असली रूप में
हम इंसानों की
मौजूदगी में ?

Tuesday, July 17, 2012

.तब कहीं पनाह न मिलेगी हमें ......


वे सारी चट्टानें
जिन्हें तोड़ा गया
मशीन की चोट से
बेजान समझकर
जिनके जन्म स्थान पर
खड़ी  हो गई
गगनचुम्भी इमारतें
वे चट्टानें, जिनके
टुकड़े –टुकड़े कर
बिछा दिया है 
जमीन पर
चीख उठेंगे एक दिन
अपनी सम्पूर्ण पीड़ा के साथ
 तब हम हो जायेंगे
बहरे, गूंगे और अंधे
फिर एक बार ..

वे सभी वृक्ष
जिन्हें काट दिया हमने
बेरहमी से
विकास के नाम पर
वे सभी पक्षी
छीन लिए जिनके
 आशियाने हमने
अपने सुख की  खातिर
कर देंगे विद्रोह
भयानक रूप लेकर 

तब हम भागते फिरेंगे
अपने जीवन के लिए
पर ..तब कहीं
पनाह न मिलेगी हमें ......


इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...