Thursday, May 5, 2016

सपाट प्रेम कविताएँ

हाँ, मेरी प्रेम कविताएँ 
बहुत सपाट होती है 
आड़ी-तिरछी,
उबड़-खाबड़ तरीके से 
नहीं लिख पाता 
मैं प्रेम को |
मेरी प्रेम कविताएँ मोहताज नहीं
किसी
अलंकार और बनावटी शिल्प के |

Friday, April 29, 2016

तुम्हारे पक्ष में

तुम्हारे पक्ष में लिखी 
सारी कविताएँ मेरी डायरी में 
कैद है 
तुम्हारी आज़ादी के साथ 
उन्हें आज़ाद करूँगा 
तुम मजबूरियों से बाहर तो निकलो
एक भरा-पूरा संसार
खड़ा है
तुम्हारे स्वागत में |

Friday, April 15, 2016

तुम्हारे रोने से पिघलेगा नहीं उनका पाषाण मन

यह जानते हुए भी
कि तुम्हारी तमाम सफाई के बाद भी
तुम्हें कहा जाएगा चरित्रहीन
और तुम्हारे रोने से पिघलेगा नहीं
उनका पाषाण मन
तुम रोती हो उनकी बातों पर
यदि ऐसा होता
तो, सीता को कभी नहीं देनी पड़ती
अग्नि परीक्षा |
यह अग्नि परीक्षा का कांसेप्ट
क्यों नहीं बनाया गया था मर्दों के लिए
कि जो भी अपनी पत्नी से दूर रहेगा अधिक समय तक
उसे भी देनी होगी अग्नि परीक्षा !
शुधि-अशुधि के सारे नियम
स्त्री के लिए ही क्यों
जबकि उसे तो तुम देवी कहते हो !
मैं तुमसे ही कह रहा हूँ
सुन लो,
जबतक तुम खुद को दोषी मानना बंद नहीं कर देते
वे इसी तरह जारी रखेंगे अत्याचार
तुम्हारे रोने से
उनका दिल नहीं पिघलेगा
जो करो शान से करो
खुद पर भरोसा करो
माँ-बाप होना
माँ-बाप होना ही है
भगवान होना नहीं
न ही पति होना
तुम्हारी देह और इच्छाओं का मालिक हो जाना है
अभी बहुत आयेंगे संस्कारी
मुझे देने गाली
और मैं हंस दूंगा
और चाहता हूँ
कि, तुम भी हंसो,
जिओ
अपनी इच्छानुसार |

Monday, April 4, 2016

तुम्हारी कविता

देर रात ...
सौंप दूंगा
तुम्हें,
तुम्हारी कविता |
अभी वो
सो रही है
मेरी डायरी में ....

Friday, March 25, 2016

उम्मीद

वक्त के इस दौर में
जब आत्महत्या करने को विवश हैं
हमारी सारी संवेदनाएं
उन्हें बचाने के लिए
कविताएँ लिख रहा है
तुम्हारा कवि
इस उम्मीद के साथ
कि मैं रहूँ या न रहूँ
दुनिया में बची रहेगी
संवेदनाएं,
संवेदनाएं जो मनुष्य होने की
पहली जरुरत है
और मेरे भीतर
बचा रहेगा
तुम्हारा प्रेम ||

Saturday, January 16, 2016

लौट कर मुझे तुम तक आना है

और आज फिर गीली हुई
तुम्हारी पलकें
विदा लेते हुए तुमने गले से लगा लिया मुझे
मैंने स्थगित कर दी
आज की यात्रा फिर
आज पहली बार नहीं हुआ
कि मुझे रुकना पड़ा
छोड़नी पड़ी अपनी यात्रा
दरअसल तुम समझे नहीं
कि मेरी हर यात्रा का अंतिम पड़ाव
तुम ही हो
लौट कर मुझे
तुम तक आना है |

Thursday, January 14, 2016

मेरे दर्द को तुमने कविता बना दिया

दरअसल मैंने
दर्द लिखा हर बार
जिसे तुमने मान लिया
कविता |
मेरे दर्द को 
तुमने कविता बना दिया !
-तुम्हारा कवि

Friday, January 8, 2016

कुछ लघु कविताएँ



1. उफ़नती  नदी  का  दर्द

और तुम्हारे आंसूओं ने
बता दिया
उफ़नती नदी का दर्द
-तुम्हारा कवि 

2.कमजोर आदमी का दावा

मेरा यकीन था
या भ्रम
कि करता रहा दावा 
तुम्हें जानने का !
यह भरोसा अपने भीतर छिपे 
उस कमजोर आदमी का दावा था,
जो खुद को जान नहीं पाया
आज तक .......!

3.मेरा वर्ग

चेहरा,
रंग,
और तन के कपड़े 
से तय किया उन्होंने
मेरा वर्ग !
किसी ने
गौर नहीं किया
मेरी भाषा पर !

4.देशद्रोही

और इस तरह 
मैं बन गया गुनाहगार 
कि दोस्ती के नाम पर 
नहीं दिया मैंने 
तुम्हारे गुनाहों में साथ
तुम्हारे
झूठ को नहीं माना
रिश्तों के नाम पर
मैंने वही कहा हर जगह
जो सत्य था मेरे लिए
और अंत में
मैं बन गया
देशद्रोही !



Wednesday, January 6, 2016

ये आदत कभी न छूटे

तुम्हारे गुस्से को
मैंने सेव कर लिया है
दिल के हार्ड डिस्क में
और गुस्से में कही गयी तुम्हारी मीठी बातों को
मैंने टंकित कर लिया है
अपनी कविता की डायरी में
ताकि पढ़ सकूं उन्हें
उनदिनों में,
जब गुस्साने की आदत छूट जाएगी तुम्हारी |
पर मैं चाहता हूँ
कि ये आदत कभी न छूटे
क्योंकि गुस्सा शांत होने पर
तुम्हें बहुत प्यार आता है मुझ पर |
-तुम्हारा कवि

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...