Wednesday, May 27, 2020

उनके बिना कोई सभ्यता खड़ी नहीं हो सकती

सड़क पर
रेल पथ पर
या कहीं और
मरते मजदूरों और उनके परिजनों पर
कोई कविता नहीं लिख पाया
सच कहूं तो
मैं हिम्मत नहीं कर पाया
दरअसल
उन शवों में मैंने हर वक्त
खुद को मरा हुआ पाया
न तो मैं रो पाया जोर से
न ही किसी से कह सका
इन तमाम लाशों के बीच
आपने मुझे पहचाना नहीं
मुझे तो लगा
आप सभी ज़िंदा हैं !!
परेशान मत होइए
मजदूर रोज मरते हैं और
जन्म लेते हैं
उनके बिना
कोई सभ्यता खड़ी नहीं हो सकती
किंतु अब उनकी मौत को
हत्या ही कहा जाएगा !!

Sunday, May 24, 2020

व्यवस्था ने उसे मार दिया

इस बार उसे
चाकू से नहीं मारा गया
ज़हर ख़रीदने के पैसे भी नहीं थे उसके पास
कोई घर भी नहीं बचा था जहां चुपके से वह लगा लेता फांसी
इस बार उसे भूखा सड़क पर छोड़ दिया गया
फिर पुलिस लगा दी गयी
कि जहां कहीं चलते हुए देखा जाए
बेरहमी से उसकी पिटाई हो
फिर भी उसने जीने की उम्मीद नहीं छोड़ी
किन्तु हत्या की सभी साज़िशें बन चुकी थी उसकी
वो बेख़बर था
वह चलता गया सैकड़ों मील
समान की गठरी और बच्चों को उठाए हुए
उसने कहीं रोटी मांगी
कहीं पानी
उसे सरकारी डंडों से पीटा गया
भूख से
पहले उसके बच्चों ने दम तोड़ दिया
फिर किसी गाड़ी ने उसे सड़क पर कुचल दिया
वो जारी समय की महामारी से
बच गया था,पर
व्यवस्था ने उसे मार दिया
सुने कि वो इस देश का
विश्वकर्मा था !!!

Wednesday, May 20, 2020

हम भूल गये हैं ख़ुद से सवाल करना

दरअसल हम भूल गये हैं जलियांवाला कांड
भूल गये हैं शायद खुदीराम बोस का बलिदान
भगत सिंह की शहादत
और अब रोहित वेमुला की क़ुरबानी
दाभोलकर, कलबुर्गी और गौरी लंकेश को
इतिहास से कटे हुए लोग
नहीं बना सकते सुंदर भविष्य अपने लिए
वे भटका दिए गये हैं
धर्म की अफ़ीम पिला कर
आज सड़क, रेल पटरी पर पड़े हैं
मानव शव
हम दर्पण से डरने लगे हैं शायद
हम भूल गये हैं
ख़ुद से सवाल करना
कोई नहीं आएगा बचाने
बचने के लिए
उठ खड़ा होना पड़ेगा ख़ुद से
जब तक जारी रहेगा नरसंहार का यह खेल
संपूर्ण सत्ता
यानी तानाशाही...

Monday, May 18, 2020

वे देह से मरे हैं

वे बच भी जाते हैं तो
आत्महत्या कर लेते हैं
क्यों ?
महामारी से अधिक
आत्महत्या से मर रहे हैं लोग
भुखमरी से मर रहे हैं बच्चे
पैदल चलने से मर रहे हैं
हम देख रहे हैं खामोश
मैं कैसे मरूंगा पता नहीं
किंतु अक्सर उन मरने वालों के बीच
ख़ुद को मरा हुआ देखता हूं
वे देह से मरे हैं
हम आत्मा से
अब
सरकारी आदेश है
आत्मनिर्भर बनो!!

Wednesday, May 13, 2020

यातनाओं के पैर नहीं होते

यातनाओं के पैर नहीं होते
उसे इंसान ढोता है
कभी अकेले
कभी मिलकर
यह यातनाओं की
यात्रा का समय है
मुझे तुम्हारा साथ चाहिए
और तुम ..
कहीं गुम हो

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...