Friday, March 30, 2012

उन्हें नहीं है रोटी की चिंता

उन्हें नहीं है 
रोटी की चिंता 
कोई आकर बना जाता है 

वे सिर्फ खाने में माहिर हैं 
बड़ी तबियत से खाते हैं 
पचा भी लेते हैं .....

वो जो आकर 
सेंक जाता है रोटियां 
उनके लिए
उन्हें वे
हरामखोर कहते है ..

Monday, March 26, 2012

क्यों जता रहे हो यह अहसान ?

गाँधी ने पहनी नहीं 
कभी कोई टोपी 
फिर उनके नाम पर 
वे पहना रहे हैं टोपी 

छाप कर नोटों पर 
जता रहे अहसान 
जैसे आये थे बापू 
इस देश में बनकर कोई 
मेहमान .........

हर चुनावी मैदान पर
आती है तुम्हे
उस संत की याद
फिर भूल जाते हो
उन्हें चुनावों के बाद

क्यों जता रहे हो 
यह अहसान ? 

Friday, March 23, 2012

भगत सिंह की याद में


हे महान वीर सपूतों
तुम्हारे लहू से
सिंची जमीं पर
उग आये हैं
नागफ़नी के पेड़

बेख़ौफ़ होकर
बढते गए
सोख कर नमी इस माटी की
देखो कैसे हँस रहे हैं
फैलाकर कांटे
चारो ओर

आज समय है घनघोर
उन्माद हंसी हंस रहे हैं
सभी महाचोर

शाहदत तुम्हारी
व्यर्थ न जाये
जीवन यूँही सूख न जाये
हर पल तुम्हारी याद आये
हे भगत महान
लौट आओ
एक नई
क्रांति का राह दिखलाओ

Thursday, March 22, 2012

आत्मगान

यह आत्मगान का दौर है 
खुले स्वर में गा रहे हैं 
अपना -अपना राग 
वाह -वाही की लूट है 
उठा -पटक 
छल -कपट 
सब जायज है 

आत्मगान 
यानी खुद की स्तुति 

Sunday, March 18, 2012

देखो पैंतरा कमाल की


इंदिरा ,माया , जया
जो चाहा
सब पाया
हम -तुम बने रहे
बस बेहया
त्रिवेदी से पूछकर देखो
ममता से क्या पाया

किशन गया
त्रिवेदी भी गया
अब बारी बंगाल की
देखो पैंतरा कमाल की

दिल्ली का " सिंह"
कमजोर है
बंगाल टाइगर जानती है
न माँ रही
न माटी रही
मानुष की खोज जारी है ............

Thursday, March 15, 2012

धुआं -धुआं है चारो ओर


धुआं -धुआं है
चारो ओर
क्या बुझ गई है आग
या सुलग रही है
कहीं दबी हुई है भीतर
दिल के किसी कोने में ?

ये धुआं
एक संकेत है
इसे पढना आसान नही
कुछ लोग
दे रहे हैं हवा
देखना चाहते हैं
गर्माहट कितनी बची है
ढेर राख के नीचे .......................?

Wednesday, March 14, 2012

फिर भी दिखाई देते हैं ईश्वर


खुद को घोषित किया नास्तिक
फिर भी दिखाई देते हैं ईश्वर
मुस्कुराते मासूम ,
नन्हे चेहरों पर
मैं क्या करूँ .................?

Friday, March 9, 2012

स्थापित करे कोई नई मिशाल.................

कब तक देखूँगा तमाशा 
मूक ,
निशब्द 
मूर्ति बनकर
मूर्छित चेतना
निरंकुश व्यवस्था 
कबतक सहेंगे 
हम ये व्यवस्था ?
आओ उठाये 
क्रांति मशाल 
हम भी धरे रूप विशाल 
स्थापित करे कोई नई मिसाल .................

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...