Tuesday, November 27, 2018

राजपथ पर नंगे पाँव चलते नागरिक पहचानते हैं मुझे

अब यदि कोई पूछ लेता है परिचय -क्या करते हो कह कर
उनसे कहता हूँ
- दास नहीं हूँ
राजा के घोड़ों को घास नहीं डालता
न ही पिलाता हूँ पानी उनको 
कहता हूँ - मजदूर हूँ
जिन्दगी की लड़ाई में व्यस्त हूँ
कहता नहीं हूँ अभिमान भाव से उनसे
कि कवि हूँ
पर कवि के पक्ष में हूँ
जो किसान -मजदूर और शोषितों की हक़ की लड़ाई में शामिल हैं
राजपथ पर नंगे पाँव चलते नागरिक पहचानते हैं मुझे
राजा से मेरा कोई रिश्ता नहीं है
उनके जलसे में शामिल तमाम लोग मुझे नहीं पहचानते
यही मेरा परिचय है !

Saturday, November 10, 2018

इस पीड़ा का क्या करें

बीते दिनों में
कोई कविता नहीं बनी
लगता है दर्द में कुछ कमी रह गई
पर बेचैनी कम कहाँ हुई है
क्यों भर आती है आँखें अब भी 
तुम्हारे दर्द में
मजदूर की पीड़ा कम कहाँ हुई है
किसान ने फांसी लगाना बंद कहाँ किया
भूखमरी में कमी कहाँ हुई है
निज़ाम ने छलना कहाँ बंद किया है ?
हमको जाना है
चले जायेंगे
पर इस पीड़ा का क्या करें ?

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...