Tuesday, March 16, 2010

कुछ नहीं बदलनेवाला

मायूस नहीं हूं मै
किन्तु जनता हूं , कि
यह सच है 
कि मेरे प्रयासों से 
कुछ नहीं बदलेगा 
किउंकि -
अब हमने 
सहने की आदत डाल ली है .


जिन पर कभी न बिकने की  मुहर थी 
वे भी अब बिकने लगे हैं 
वे नयन सुख चुके हैं अब 
जो कभी सजल थे .


मेरी सोच नकारात्मक लगे
शायद
किन्तु यह सच है
कि कुछ नहीं बदलनेवाला
सिर्फ प्रयासों से अब .

 नई आशाओं से मै करूँ
तुमसे यह आह्वान , कि
आओ बनाएं अब
वो लहर
जो रुके न किसी बाँध से
और तोड़ डाले कुंठा के चट्टानों  को 
यह लहर  प्रयासों का नही
परिणाम का लहर होगा
उम्मीद अब भी है तुमसे मुझे 
इसलिए मायूस नही हूं मैं .

Sunday, March 14, 2010

जुगनुओं ने

जुगनुओं ने टिमटिमाना
कम कर दिया है
शेष बचे जंगलों में
और मेरे बच्चे
सहजकर रखने लगे हैं
जानवरों की तसवीरें
अपने बच्चों के लिए .

माँ ने उस "बरसाती कोट" को 
बेच दिया है -
जो बाबा ने दिया था उन्हें 
बारिश से बचने के लिए 
मेरे शहर से
 श्रावण  रूठ गया है .

नदियाँ थककर  चूर हैं 
रुक गयी  है 
एक जगह पर 
मैदान बनकर 
श्रावन में भी अब उन्हें 
प्यास लगती है .

भंवर को 
देखा नही कब से 
फूलों पर मचलते 
कुमुदनी अब शायद 
ग्रस्त है किसी "फ्लू " से .   

मेरे आंगन में

मेरे आंगन में
अब चिड़िया नहीं आती
दाना चुगने
शायद उन्हें पता चल गया है
महंगाई का स्तर
और मेरी हालात का .

मेरे आंगन में 
नीम का जो पेड़  था 
पर्णहीन हो चुका है अब 
सदा के लिए 
मेरा आंगन अब 
बंज़र हो चुका है .

झरने अब गीत नहीं गाते 
पहाड़ो से गिरना रुक गया है उनका 
उनके पहाड़ों पर 
अब आदमी का बसेरा है .
तालाबों के मेढकों ने 
"वीजा" पा लिया है 
किसी दुसरे देश का 
अब वे अप्रवासी  कहलाते हैं .  

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...