Tuesday, September 28, 2021

इन्सान नमक हराम होता है!

 नमक तो नमक ही है

नमक सागर में भी है
और इंसानी देह में भी
लेकिन,
इंसानी देह और समंदर के नमक में
फ़र्क होता है!
और मैंने
तुम्हारी देह का नमक खाया है!

उच्च रक्तचाप वालों को नमक से
परहेज करना चाहिए
लेकिन आयोडीन की कमी से
वे रोग ग्रस्त भी हो सकते हैं!

इन्सान नमक हराम होता है!

Tuesday, August 10, 2021

'भाग्य-विधाता' तस्वीर में मुस्कुरा रहे हैं

 बहुत अजीब सी ख़ामोशी है

जबकि आतंक लगातार तांडव कर रहा है
हमारे आसपास
इसे भय कहा जाए
या बेशर्मी !
मेरे कमरे से संविधान नामक पुस्तक
गायब है
जिसमें 'लोकतंत्र' और 'न्याय' नामक शब्दों का
उल्लेख है!
'स्वच्छता अभियान' अपनी रफ़्तार में है
लेकिन हमारे आसपास
कचरे का ढेर लगा है
बीमारी फ़ैलाने के लिए मक्खियों के झुंड भिनभिना रहे हैं
हम अब मास्क पहनकर टहल रहे हैं!
पर्यावरण वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की है
इसी सदी में दुनिया डूबने वाली है
मानव सभ्यता पर खतरा मंडरा रहा है
जबकि इस वक्त
मुझे 'मानवता' की तलाश है!
अधिनायक की सवारी की तैयारी लगे हुए हैं
सिपाही और प्यादे
क्या नगर में आपातकाल घोषित हुआ है?
चौराहे के कोने में बैठा मजदूर
अपनी बीड़ी सुलगाने को माचिस खोज रहा है !
'फ्री वैक्सीन' के बाद ज़हरीले नारों के बीच
'भाग्य-विधाता' को धन्यवाद देते पोस्टर
खूब चमक रहे हैं
राजधानी की सरकारी भवनों पर
राशन की थैली पर
'भाग्य-विधाता' तस्वीर में मुस्कुरा रहे हैं
कवियों को
सरकारी नौकरी मिल गयी है!

Tuesday, May 11, 2021

इंसानी लाशों की बदबू तो आती होगी आपको भी !

 चिताएं धधक रही हैं

शोक, चीत्कार और पीड़ा के बीच
जारी है जीवन का उत्सव भी
विवाह के मंडप सजाएं जा रहे हैं
उनके तमाम 'भगवान' मास्क पहनकर मंदिरों में
खामोश बैठे हैं
किन्तु इस बीच कुछ सड़ी-गली इंसानी लाशें
नदी में तैर रही हैं
कुछ लोग इस बात से परेशान हैं कि
चिताएं अधिक जल रही हैं इस बार
जबकि कब्रें कम खुद रही हैं !
जबकि वे भी इंसान कहलाते हैं !
इनके इस दुःख का कोई निवारण नहीं है हमारे पास
दुनियाभर के हुक्मरानों, पूंजीपतियों ने कैसे खुद को
सुरक्षित कर लिया है
यह एक राज़ है !
महामारी या वायरस भी डरता है
पूंजी और सत्ता से
किन्तु चर्चा इस बात की है
कि खरबपति बिल गेट्स
अपनी पत्नी से अलग हो रहा है
जबकि यहां लोग बिना उपचार
और बिना ऑक्सीजन के दम तोड़ रहे हैं!
विश्व बैंक, रिज़र्व बैंक, कॉमर्स चैम्बरों की चिंता है
कैसे बढ़ें व्यापार
मुनाफा कैसे बढ़ाएं !
मेरी हैरानी ,
आपको हैरानी न भी हो तो
इंसानी लाशों की बदबू तो आती होगी आपको भी
कैसे रोकते हैं उसे
बताइए हमें भी...
हम सो नहीं सके हैं
कई रातों से .....!!

Monday, February 15, 2021

मैं प्रेम की परिभाषा नहीं जानता

 रिक्शे पर खुले आकाश के नीचे

तुम्हारा अंतिम चुम्बन
आज भी अंकित है मेरे गाल पर
मैं प्रेम की परिभाषा नहीं जानता
तुम्हारी खुशबू आज भी बाकी है
मेरी सांसों में
फूल सूख गया है
पर मैंने सम्भाल के रखा है
पंखुड़ियों को
गुलाल के लिए

क्रांति की अपनी विरासत होती है

 गिरफ्तारी,

हिरासत,
हत्या
डरे हुए शासक का परिचय है
पाश को याद करो-
और उग आओ
उसके हर किए-धरे पर
एक दिन वो थक जायेगा
और करेगा ख़ुदकुशी
किसी अंधकार भरे कमरे में
क्रांति की अपनी विरासत होती है
एक इतिहास होता है
जिसमें निस्वार्थ कुर्बानियां
अव्वल हैं
घबराओ नहीं
तापमान बढ़ेगा
बर्फ का पिघलना तय है
तब धरती के सीने पर घास उगेंगे
फूल भी खिलेंगे !!

Saturday, January 30, 2021

महात्मा के लिए

 सम्भव है कि

गोडसे के उपासक भी
सुबह तुम्हारी समाधि पर जाएंगे
तुम्हें श्रद्धांजलि देने
बिलकुल वैसे ही जाएंगे
जिस तरह जाते हैं वो
तुम्हारे आश्रम में
तुम्हारे चरखे पर बैठ तस्वीर खिंचवाने के लिए
किन्तु वो कभी भी नहीं कहेगा
गलत था गोडसे |
सुकून से रहो बापू अपनी समाधि में
यहाँ आग लगी हुई है चारों ओर
यह आग फ़ैल रही है तेजी से पूरे मुल्क में
जंगल की आग की तरह
बुझाने की जिम्मेदारी जिन पर थी
अब वे ही इस आग को हवा दे रहे हैं !
आपका चश्मा अब
विज्ञापन के काम आता है
और आपका चरखा
कैलेंडर की तस्वीर के लिए
आपकी छड़ी और घड़ी का पता नहीं मुझे
आपकी बकरी कहीं नहीं मिली
आपके बन्दर चारों ओर घूम रहे हैं किन्तु
सत्य के साथ आपका अनुभव भी तो ऐसा ही था न ?
बापू तुम दुःखी मत होना
हत्या को अब पाप नहीं मानते यहाँ के लोग!




Monday, January 11, 2021

हम शर्मिंदा नहीं हुए अब तक

 और अन्तत: सूरज खिला

राजधानी की सीमाओं पर बैठे किसानों के चेहरे पर
ओस की बूंदे आज उड़ी हैं
सूरज ने आज अपना काम ठीक से किया है
सूरज जानता है
फसल की बालियों को छूकर ही
उसकी किरणों को मिलता है श्रृंगार
बनते हैं गीत
मिलता है नया रूप
लिखी जाती है कविता
दरअसल सूरज ने नमक का कर्ज अदा किया है
जो उसने सोंका था
चैत में किसान की देह से
किसान की लड़ाई में
आज शामिल होकर उसने
जताया है अब आभार
बजंर धरा पर उसे कोई नहीं पूजेगा
जानता है वह ...
हमने अब तक नहीं चुकाया है
अन्नदाताओं का कर्ज़
हम शर्मिंदा नहीं हुए अब तक
क्यों .....!!

Saturday, January 2, 2021

दिल्ली की सीमा में बैठे किसानों के भीगे हुए चेहरों को सोचिये

 हो सकता है

इस वक्त जब दिल्ली में
आकाश बरस रहा है
और आप रजाई में बैठ
गर्म चाय की चुसकी लेते हुए
अपना मोबाइल स्क्रॉल कर रहे हों
ठीक इसी वक्त दिल्ली की सीमा में बैठे किसानों के
भीगे हुए चेहरों को सोचिये
एक बार
ठंड में ठिठुरते हुए
उनके होंठों को सोचिये
आखिर वे क्यों बैठे हैं
क्यों अब तक पांच दर्जन जाने चली गईं?
सोचिये इस सवाल को एक बार
इस वक्त जब उन्हें होना चाहिए था
अपने खेतों पर
वे मजबूर हैं सड़क पर सोने को
इस बारिश से राजपथ चमक उठे शायद
किंतु किसानों के खून का गंध शेष रह जायेगा
सत्ता किसी अपराध पर
शर्मिंदा नहीं होती
किन्तु जो अश्लील ख़ामोशी
हमने ओड़ ली है
उसका जवाब कौन देगा ?


इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...