Monday, June 25, 2012

दरारें फिर भी रह जाएँगी

बुने थे सपने 
कुछ हसीं
सोचे बिना 
टूटने का अंजाम 

हर सप्न के साथ 
टूटा , हर बार 
आज बिखरा पड़ा हूँ 
टूटे सपनो के साथ 

सोचता हूँ
जोड़ लूं फिर से
हर टूटे हिस्से को
पर ...
दरारें फिर भी रह जाएँगी 

Saturday, June 23, 2012

मौसमी प्रेम

कुछ इस तरह से 
सिकुड़ गया प्रेम 
जैसे ,फागुन-चैत में 
सूखता है ताल का पानी 

मौसमी प्रेम 
अमर नही होता 
मालूम था तुम्हे ,
अब करो फिर सावन का इंतज़ार
क्या पता , फिर 
पनप जाये 
तुम्हारा प्यार ...........

Thursday, June 21, 2012

खता थी मेरी

तुम्हे गिना था 
अपनों में 
रखा था 
पलकों पर 

मूँद कर आँखे 
यकीं करना, 
खता थी मेरी 
सीखा दिया, तुमने 
भावनाओं में डूबना 
खता थी मेरी, 
जता दिया तुमने ...

Tuesday, June 19, 2012

बढ़ रहे हैं शिकारी

खत्म हो रहे जंगल 
फिर भी 
बढ़ रहे हैं शिकारी 
बंदूक नही ,
तोप ,गोली और बम के साथ 

कर रहे हैं निर्माण 
ईंट-पत्थर और लोहे के जंगल 
जहां करेंगे शिकार 
मनमानी ढंग से 

काट दिए जायेंगे वे हाथ
जो उठेंगे ,इनके विरुद्ध
दबा दी जायेगी हर आवाज़

आदमखोर इस जंगल का
हो रहा विस्तार
यहाँ आदमी ,
आदमी का करेगा शिकार

क्या हम मिलकर
रोक पाएंगे इसे ..?

तुम बहुत याद आये ....

पतझड़ के मौसम में ,
तुम, बहुत याद आये 
मैं शराबी हूँ, तुम्हे याद है ?
देखो लोग  झूमते हैं पीकर
मैं झूमता हूँ 
तुम्हे सोचकर ..

Monday, June 18, 2012

जारी रहे अनवरत

दहक कर जब 
जल उठे मेरी चिता 
दहक उठे कुछ शोले 
तुम्हारे दिल में भी

मैं चाहता हूँ
विद्रोह की आग
कभी न बुझे
और अमर हो जाये
हमारी क्रांति

जारी रहे अनवरत
आये न जब तक चारों ओर
अमन और शांति ........

Sunday, June 17, 2012

फेस बुक


उन्हें अच्छा लगता है
जब कोई आता है
उनके पोस्ट पर
टिप्पणी छोड़ जाता है
पसंद कर जाता है
लिखा हुआ
छपा हुआ उनका

पर ...
वे भूल कर नहीं करते
 ऐसी भूल

ये सभी बड़े लोग है
इनके तर्क भी बड़े
फोल्लोर्स भी बड़े
ये फेस बुक है
जहां छुपाया जाता है
असली चेहरा कई बार

उन्हें कोई
फर्क नही पड़ता
मुझ जैसा छोटा आदमी
क्या करता है
क्या लिखता है
वे जानते हैं अपना मूल्य
यदि कह दिया कुछ भूल से
सोचते  हैं
मैं हो जाऊंगा  अमर
उनकी तरह ....

उनसे क्या कहना यारों
जो , मान चुके हैं खुदा
  खुद को .....

रेत पर खेलते बच्चे


रेत पर खेलते
बच्चे , कितने खुश दीखते हैं
टीले, घरौंदे बनाते
फिर तोड़ते
फिर बनाते
कितने खुश होते बच्चे
अपने सपनों से खिलवाड़ करते
फिर बुनते

नए सपने
मुट्ठी में भरकर 
वे जानते हैं,
साकार नही होते
रेत पर |
फिर भी कितने खुश होते हैं
रेत पर खेलते बच्चे ........



Tuesday, June 12, 2012

सुंदरवन



परिवर्तन के नारों के बीच
शांत पड़ी है
 ‘मौनी नदी’
सुंदरवन के बीच

कुछ बचे बाघों ने
माथे पर लिए आदमखोर का कलंक
पंकिल कछार पर 
नदी किनारे छोड़ दिए हैं
पंजों के निशान
ताकि, गिन सके हम आसानी से
उनकी संख्या
और मैनग्रोव के जंगल
करते हैं ज्वार का इंतेजार

जंगल निवासी भी हो गए
विलुप्त ....
माफियों के हाथों

परिवर्तन का यह दौर
बहुत भारी है
पुल बन गया है ,और
नौकाएं निष्क्रिय हैं
बस परिवर्तन वाले दल का
पताका बुलंद है

खारा पानी पीकर
सुंदर वन के बंदरों के लाल हुए गाल पर भी
 दिखता है उन्हें विपक्ष

भय है मुझे
कहीं बाघ के बाद
यह भी न आ जाये निशाने पर ..
मौनी नदी ने बताया
क्यों रहती है वो खामोश .... 

Monday, June 11, 2012

संभलकर परखना ....

मुझे देख लो 
उन्हें भी देखना 
जो , आयेंगे मेरे बाद 
बस तुम परखते जाना 
लेते जाना अनुभव 

पर , सावधान

संभलकर परखना ....
आदमी खो जाता है
दूर चला जाता है
हर रिश्ते से
कई बार ..
परखते -परखते

कायरता के सभी गुणों से पूर्ण कोई बहादुर नही होता .....

खुले आकाश के पंछी को 
बनाना निशाना 
बहादुरी नही 
धर्म ध्वजा उठाकर चीखना 
बहादुरी नही 
निरुत्तर होकर
हाथ उठाना भी
नही है बहादुरी 


करों सामना लहरों का
तूफान से लड़ों
पिंजरे के  पंछी का
पंख काटना
बहादुरी नही
कायरता के सभी गुणों से पूर्ण
कोई बहादुर नही होता .....

Saturday, June 9, 2012

गांव छोड़ते हुए लिखी गई कविता




शिखोरबाली (मेरा गांव ) में आज अंतिम दिन है ....

बहुत मुश्किल है 
तुम्हे भूलना 
तुम्हे छोडना '
मेरे साथ जायेगी तुम्हारी 
मिट्टी की खुशबू 
हवा की महक 
चिडियों की चहक 
कच्ची सड़क
मन उदास है
हवा भी बंद है
तुम्हे भी गम है
मेरी आँखें आज नम है ........

बनारस में अस्सी चौराहा

बनारस में 
अस्सी चौराहा पर 
पप्पू  की चाय दुकान 
साहित्यकारों का अड्डा है 

मिल जाते हैं यहाँ 
कुंवर जी अग्रवाल ,
वाचस्पति 
रामज्ञा शशिधर 
और बहुत से कवि -लेखक , संपादक 

अस्सी चौराहे का चाय वाला
थकता नही बनाते -बनाते चाय
चाय पर चाय
वहस पर वहस साहित्य से लेकर
दुनिया भर की

फिर खाए पान
यही बनारस है .............

Thursday, June 7, 2012

मैं सक्रिय हूँ अहसास होता रहे |

मेरा विरोध 
यूँ ही जारी रहे 
ताकि , 
मैं सक्रिय हूँ 
अहसास होता रहे |

रोज करो
तुम मेरी मौत की दुआ
मैं जीवित हूँ
अहसास होता रहे |

यूँ ही देते रहो 
अहसानों के ताने
ताकि , मैं ऋणी हूँ तुम्हारा
यह अहसास होता रहे |

छुप कर करो वार
पीठ पर
एक दुश्मन है मेरा, कायर
अहसास होता रहे |

चाँद की बेचैनी ......

जल दर्पण में 
देखा चाँद को 
एक दम शांत 
लहरों ने किया विचलित रह -रह कर 
पानी को मालूम था 
चाँद की बेचैनी ......

Wednesday, June 6, 2012

बंद आँखों से खोजना मुझे

तुम्हारे कांधों से 
जब उतरे 
मेरी सांसे 
और भीग जाये 
तुम्हारा तन 
मेरे अश्कों से
तब....
बंद आँखों से खोजना मुझे
तुम बीते हुए

 हर लम्हे  में
मेरी मौजूदगी का अहसास होने तक .........

Friday, June 1, 2012

दिल्ली में जब होता है मंथन मूल्य वृद्धि पर


दिल्ली में जब होता है
मंथन मूल्य वृद्धि पर
वे खामोश रहते हैं
ख़ामोशी, समर्थन है
वे शायद भूल जाते हैं
मूल्य वृद्धि के बाद वे हल्ला करते हैं
इसे ही राजनीति कहते हैं 

किया जाता है
बंध का आह्वान
वे भूल जाते हैं
कि मूल्य वृद्धि से ही जीवन
आप ही थम जाता है आम आदमी का
बस थमती नही
लाल बत्ती लगी उनकी गाड़ियां
जो तेल से नही
हमारे खून से चलती है
धर्मघट से घट सकती अगर
बढ़ी हुई दरें
तो बढ़ती क्यों ?

ये पैंतरे पुराने हैं
बस हम ही भूल जाते हैं
और शामिल हो जाते हैं
उनके जुलूसों में ...

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...