Sunday, November 21, 2010

धूप पिघल रही है

धूप पिघल रही  है

और --

आदमी सूख रहा है जलकर 
...
राजा लूट रहा

मंत्री सो रहा है

वकील जाग रहे हैं

विपक्ष नाच रहा है

सड़क पर कुत्ते भौंक  रहे है

"मैं " नासमझ दर्शक की तरह

सब कुछ खामोश देख रहा हूं ?

Friday, November 12, 2010

चारमीनार जो खड़ा है

निज़ाम का शहर
हैदराबाद ---
बदल गया है समय के साथ
और --
चारमीनार जो खड़ा है
सदियों से  मूक
 एक  गवाह बनकर
इस बदलाव को
देख रहा है इस बदलते शहर के
तहज़ीब को
बड़ी बारीकी से
पुरानी सड़के अब चमकने लगी है
किन्तु  ----
अब भी दौड़ रहे हैं
नन्हे  नंगे पैर
उन सडको पर  दौड़ती हुई
गाड़ियों के पीछे
उन नंगे पैरों पर दौड़ते
बचपन को सरकार
कल का नागरिक कहती है
इधर लोग रोज़ देख रहे हैं
चारमीनार को
और सोच रहे हैं उसे एक
मूक - बहरा  मीनार मात्र
किन्तु --
इसी चार मीनार ने
देखी और सुनी है
हर बार  तमाम
भयंकर  चीखें .

Sunday, November 7, 2010

मेरे ख़त के जबाव में

मैंने लिखे उन्हें ख़त
 मिले उन्हें मेरे ख़त
किन्तु जबाव न आया  मेरे किसी ख़त का
मेरे ख़त के जबाव में
कोई ख़त न भेज कर
उन्होंने मेरे खतों का जबाव दिया
खामोश रहकर .

Tuesday, November 2, 2010

खाद्य मूल्य जब बढ रहे थे

जांच का आदेश दे दिया गया
किसी पर आंच न आने पाए
यह भी कह दिया गया .

खाद्य मूल्य जब बढ  रहे थे
बित्त मंत्री शेयर बाज़ार के आंकड़े  गिन रहे थे
कृषि मंत्री क्रिकेट के लिए  पैसे जुटा रहे थे
किसान खेतों में मर रहे थे .

आज़ाद भारत में

आज़ाद भारत में
घुम रहे हैं --
निर्भय होकर शैतान
चोहान -पवार - कलमाड़ी  जैसे
मार रहे मैदान .

भूख हड़ताल 
शुरू होगया
सुबह नाश्ते के बाद
समाप्त हो जायेगा यह
दोपहर भोजन के बाद .

अनाज सड़ रहा
गोदाम के बाहर
चूहों का हो गया राज
एफ. सी . आइ . के
अफसरों ने
यही किया महान काज .

अब ऐसा भी हो सकता है कि

अब ऐसा भी हो सकता है कि
कभी चाँद आये ज़मी पर
और कहे -
जल मत चड़ाओ अब मुझे
किउंकि अब तुम पड़ गए हो
मेरे जल के पीछे
किउन  इतना खर्च करते हो
मेरे जल के लिए
भेज रहे हो लोगों को
मुझ तक पानी की खोज के बहाने
जितना पैसा तुम खर्च करते हो
गरीबों को बाँट दो
किसानों को बाँट दो
वे भूख से मर रहे हैं
यदि मेरे घर में
पानी मिला
मैं खुद ही
वर्षा दूंगा धरती पर
कल तक पूजा करते थे
आज भरोसा तो करो कम से कम

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...