Wednesday, April 17, 2019

उसके हाथों में खून के धब्बे नहीं बचे हैं

उसके हाथों में
खून के धब्बे नहीं बचे हैं
किन्तु जले हुए
इंसानी मांस की दुर्गन्ध आती है
तमाम अपराधों में नामज़द अपराधी 
उसकी मंडली में शामिल हैं
इतना ही नहीं
वह भेजता है अपने एक वज़ीर को
हत्यारों के स्वागत के लिए
मिष्ठान और माला के साथ
हत्या के बाद जश्न में शामिल शैतान
उसके मित्र हैं
कोई हैरानी नहीं है कि ये सभी
एक अपराधी के सामान्य गुण हैं
हैरानी इस बात पर होती है कि
एक जज मारा गया
और अदालत ने कुछ नहीं कहा
चिंता इस बात की है
लोग तो मरें
और मारने वाले को निर्दोष बताया गया
सबूतों के अभाव में
'वी दि पीपुल' हम नहीं रहें
वह संविधान बदलना चाहता है
और हम आपस में
एक-दूसरे को नीच साबित करने की मुहीम में लगे हुए हैं
आने वाले दिनों में अँधेरा और गहराएगा
तानाशाह अपनी जीत पर नहीं
हमारी मूर्खता पर जोर से ठहाका लगाएगा

Friday, April 12, 2019

अपराध करने की जरूरत नहीं

अपराधी बनने के लिए
अपराध करने की जरूरत नहीं
केवल सत्ता से
कोई सवाल कर लीजिये
मैंने तो इससे भी बहुत कम कुछ किया
तुमसे प्रेम किया
और अपराधी घोषित हो गया
अच्छा चलिए
आप न सवाल करिए
न ही प्रेम कीजिये
आप केवल अपनी जमीन
अपना अधिकार मांग के देखिये
आपको पता चल जायेगा
अपराधी कैसे बना दिए जाते हैं
लोकतंत्र में
चलो छोड़ो इन बातों को
आप खुद को मुसलमान बता कर
एक गाय खरीद लीजिये
अखबारों के मुख्य पेज पर
आपकी मौत की खबर छप जाएगी अगले दिन

Saturday, April 6, 2019

मैं पत्थर होना चाहता हूँ अब

कवियों ने चाँद को रोटी बना दिया
हम फ़रेब चबा कर जीते रहें
चाँद से कही भूख की बात
उसने मुस्कुराना छोड़ दिया
आकाश तवा नहीं है
आग पेट में लगी है
हम तन पर पानी डाल रहे हैं
मेरी भाषा बिगड़ गई है
सबको ख़बर लगी
किसी ने भूख पर चर्चा नहीं की
सुने कि इस देस में आठ बरस की मासूम लड़की ने
भात-भात चीखते हुए दम तोड़ दिया है
भारत भाग्य विधाता बना हुआ बहरूपिया
लगातर मुस्कुरा रहा है
मेरी चीख़ पर
क्योंकि मेरी चीख़ अब गूंजती नहीं आपके कानों में
तय कर लिया
अब नहीं चीखूंगा
नहीं कहूँगा भूख और भूखों की बात
सब ठीक है
हमने फ़तह कर ली है आसमान
राकेट उड़ा कर
विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था का नागरिक हूँ
कैसे बदनाम कर सकता हूँ
महान देश का नाम
हाँ, अब शर्मिंदा हूँ कि
मैंने भूख की आवाज़ उठाई
खाये-अघाये लोगों के समाज में
पत्थरों ने नहीं सुनी कभी नदी की पीड़ा की कहानी
मैं पत्थर होना चाहता हूँ अब

Thursday, April 4, 2019

खो गया स्मृतियों में

उदास होकर रोना चाहता था तुम्हारी याद में हो न सका खो गया स्मृतियों में दुर्गापुर स्टेशन में चाय पीने लगा ट्रेन की प्रतीक्षा में अस्सी घाट पर सेल्फी लेने में खो गया संकट मोचन मंदिर के बंदरों को हलवा खिलाते देखता रहा तुमको विश्वनाथ के मठ में ठगों को जमा देखा भांग का गोला खाए बिना नौकाओं को झूमते देखा गंगा की छाती पर मुक्ति भवन में जगह नहीं बची थी मेरे लिए जंगल बुक के मोगली को देखा शेर खान से लड़ते हुए खुले आकाश तले मुझे चूमते हुए रिक्शे वाले ने देखा तुमको अस्सी घाट की कुल्हड़ वाली चाय की गर्माहट मेरी सांसों से बहने लगी बिछड़ने से पहले तुम्हारा अंतिम आलिंगन जैसा अब बनारस उजड़ गया है विकास की आंधी में बाकी है मुझमें बनारस का खुला घाट और तुम्हारे स्पर्श का अहसास शांत है गंगा बेचैन हैं घाट उन्हें हमारी ग़ैर हाज़री खलती होगी पान चबाये तुम्हारे सुर्ख़ होंठ क्यों उदास है आज ? इस सवाल का जवाब नहीं है मेरे पास जबकि ख़बर मिली है तुम खुश हो अपनी दुनिया में !

यहाँ एक पुल गिरा था
दब कर मर गए कई लोग
हम ज़िन्दा हैं
यादों के सहारे


Monday, April 1, 2019

जीत मेरी नहीं हमारी होनी चाहिए

लड़ रहा हूँ
तुम्हारे
अधिकारों के
हक़ में
बधाई नहीं
साथ चाहिए
जीत मेरी नहीं
हमारी होनी चाहिए
बधाई
हासिल की होनी चाहिए
जबकि
हम
अभी मैदान-ए-जंग में हैं
साथ आओ न आओ
मेरी लड़ाई ज़ारी रहेगी
तुम्हारे सुरक्षित कल के लिए
मैं मज़ाक का पात्र बनने को
तैयार हूँ
किन्तु हार नहीं मानूंगा 

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...