Thursday, June 20, 2013

खूब लिखीं हमने कविताएँ खूब गाये हैं गीत ..........

खूब लिखीं 
हमने कविताएँ 
बहुत गाये गीत 
कहीं कुछ
बदलाव न आया
बिछड़ गये मन मीत |

सबने पढ़ी
सबने सुनी
कुछ सपनों की चादर बुनी
वही पुरानी रीत
कुछ दिनों में
भूल गये सब
मेरा रुदन गीत |

इतिहास कुछ
बदल न सका
कोई पत्थर
तोड़ न पाया
टूट चुकी है
हिम्मत की रीढ़
यूँ ही बढ़ती जा रही है
मेरे शहर की भीड़

खूब लिखीं हमने कविताएँ
खूब गाये हैं गीत .................||

Friday, June 14, 2013

ये किस पक्ष के लोग हैं ...?

कठिन वक्त पर खामोश रहना 
मासूमियत नही 
कायरता है 
और 
वे सब खामोश रहें 
अपने -अपने बचाव में 
और वक्त को बनाया ढाल 
खामोशी के पक्ष में 

जब बोलना था 
तब कुछ न बोले 
जब भी बोले
अपने बचाव में बोले

ये किस पक्ष के लोग हैं ...?

Wednesday, June 12, 2013

तुम्हारे पक्ष में ...

हाँ यही गुनाह है 
कि मैं खड़ा हूँ तुम्हारे पक्ष में 
यह गुनाह राजद्रोह से कम तो नही 
यह उचित नही 
कि कोई खड़ा हो
उन हाथों के साथ जिनकी पकड़ में
कुदाल ,संभल , हथौड़ी ,छेनी हो
खुली आँखों से गिन सकते जिनकी हड्डियां हम
जो तर है पसीने से
पर नही तैयार झुकने को
वे जो करते हैं
क्रांति और विद्रोह की बात
उनके पक्ष में खड़ा होना
सबसे बड़ा जुर्म है ....

और मैंने पूरी चेतना में
किया है यह जुर्म बार -बार ..

Tuesday, June 11, 2013

क्रांति के लिए

अपने आवारा दिनों में 
मैं भी नंगे पैर घास पर चलता रहा 
महाकवि 'वॉल्ट व्हिटमॅन' की तरह 

मैं सोचता रहा 
अपने मन में पल रहे विद्रोह के बारे में
मैंने 'नजरुल' को पढ़ा
गौर से देखता रहा मेरे आसपास की हर घटना को
मैं सुनता रहा
तुम सबकी बातें
मेरे आस -पडोस में लोगों ने
जमकर मेरी आलोचना की

मैंने 'कबीर' को सोचा उस वक्त
तभी मुझे याद आई
'सुकरात' की कहानी
फिर अचानक
मेरे मस्तिक में उभरने लगा क्रांति में शहीद हुए
क्रांतिकारियों का रक्तिम चेहरे
शासन के हाथों घायल होते हुए भी
बंद मुट्ठी लिए
क्रांति के लिए
उठे हुए लाखों हाथ

मैंने अपने कांपते तन -मन को
संभालने की नाकाम कोशिश की
अचानक मैंने भी मुट्ठी बनाकर
इन्कलाब कहकर
आकाश की ओर उठा दिया अपना हाथ

Sunday, June 2, 2013

जल आन्दोलन







जल आन्दोलन में 
वे सबसे आगे रहे 
पानी पर लिखी उन्होंने ढेरों कविताएँ 
किसान की कथा लिखी कागजों पर 
कुछ ने उन्हें जनकवि कह दिया 
अपनी विचारधारा के पक्ष में 
उन्होंने भी की लंबी -लंबी बातें 
आजकल उनकी सभाओं में 
बड़ी कम्पनी का बोतलबंद पानी आता है ..

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...