Wednesday, April 26, 2017

नि:शब्द है हमारा दर्द

नि:शब्द है 
हमारा दर्द 
आओ,
आँखों से साझा करें इसे 
हम, एक -दूजे से

कभी न माँगना मेरा अकेलापन

मैं एक यायावर हूँ
ठहराव नहीं,
राह चाहिए |
फिर भी 
कभी भूले से
यदि पहुँच जाऊं 
तुम्हारे शहर
तो मांग कर देखना कुछ
दे जाऊंगा सब कुछ |
केवल मुझसे
कभी न माँगना
मेरा अकेलापन,
मेरी उदासी
मैं  दे न सकूँगा |
-तुम्हारा कवि
तुम्हारे लिए
26 अप्रैल 2016

Monday, April 17, 2017

यहाँ बिना लड़े नहीं मिलता जीने का अधिकार

ठीक इस वक्त
जब मैं,
और आप
अपने -अपने कमरे में
बैठे हुए अखबारों की सुर्खियाँ चाट रहे हैं 
गाँव में मगरू और गोबरधन
फटी धरती पर खड़े होकर
रूठे हुए आकाश को ताक रहे हैं
उनके ठीक बगल में
शरत बाबू का 'महेश'
उदास खड़ा है
गफूर की नन्ही अमीना
गयी है कहीं दूर
पानी की खोज में
इधर दिल्ली के निज़ाम ने
अपने नये सूट के माप के लिए
टेलर मास्टर को राजभवन आने का आदेश दिया है
तुम अपने वातानुकूलित शयनकक्ष में अंगड़ाई लेके फिर से सो गये
मैं पसीने में तर
तुम्हारे नमक का हक अदा कर रहा हूँ
यदि किसी दिन हाथ आ गया सूरज
उसे निचोड़ दूंगा
मैं,
मगरू और गोबरधन के गाँव जा रहा हूँ
वहां महेश से कहूँगा
भारत में रहना हो तो
गफूर को अपना मालिक मत बनाना फिर कभी
और अमीना से कहूँगा
कि जीना है तो
अपना नाम बदल ले
या उठा ले क्रांति मशाल हाथों में
यहाँ बिना लड़े नहीं मिलता जीने का अधिकार
आज़ादी का आना अभी बाकी है साथी |

Friday, April 14, 2017

जनकवि रोता है

अपराध की बड़ी घटनाएं
जब सिमट जाती हैं
अखबारों के भीतरी पेज के किसी छोटे से कोने में
और जब लोगों की रूचि बदल जाती है
व्हाट्स एप चैट पर 
ऐसे में संवेदनाएं डिजिटल होकर
बह जाती हैं
बारिश के पानी की तरह
प्रेम डूब जाता है
बाढ़ में खेतों की तरह
सत्ता ठहाका लगाती है
अपनी जीत पर
किसान फांसी लगाता है
अंधकार अपने साम्राज्य का विस्तार करता है
भांड लीन हो जाते हैं जयगान में
माँ मजबूर हो जाती है
भूख से तड़पते अपने बच्चे के लिए
प्रेमियों को सुना दी जाती है
सज़ा-ए-मौत
अंधकार कोने में
जनकवि रोता है
कि उसका लिखा कुछ काम न आया !

Thursday, April 13, 2017

मेरी प्रेम कहानी तस्वीरों में कैद है

यह लोकतंत्र का वो दौर है मेरे देश में
जब योग सिखाने वाले
व्यापारी को दी जाती है
जनता की कमाई से
सरकारी सुरक्षा 
सत्ता की तारीफ़ करने वाले पत्रकार भी
पा जाते हैं सुरक्षा गार्ड !
सत्ता की जीत पर लडडू  बाँटते पत्रकार
हमने देखे हैं
जबकि पत्रकार को हमेशा
सत्ता के विपक्ष में होना चाहिए !
यहाँ प्रेमियों पर पहरा देने
उन्हें पीटने के लिए
बहुत दल गठित हैं अब
किन्तु
प्रेम की रक्षा के लिए
कोई नहीं है
मैं खबरों से निकल कर
तस्वीर देख रहा हूँ
जिनमें तुम
मेरे कंधे पर सर रख कर
मुस्कुरा रही हो !
मेरी प्रेम कहानी
तस्वीरों में कैद है !

Monday, April 10, 2017

अपना अधिकार मांग के देखिये

अपराधी बनने के लिए
अपराध करने की जरूरत नहीं
केवल सत्ता से
कोई सवाल कर लीजिये
मैंने तो इससे भी बहुत कम कुछ किया
तुमसे प्रेम किया
और अपराधी घोषित हो गया
अच्छा चलिए
आप न सवाल करिए
न ही प्रेम कीजिये
आप केवल अपनी जमीन
अपना अधिकार मांग के देखिये
आपको पता चल जायेगा
अपराधी कैसे बना दिए जाते हैं
लोकतंत्र में
चलो छोड़ो इन बातों को
आप खुद को मुसलमान बता कर
एक गाय खरीद लीजिये
अखबारों के मुख्य पेज पर
आपकी मौत की खबर छप जाएगी अगले दिन
- मैं, वही
तुम्हारा कवि

Saturday, April 8, 2017

मेरी माँ कोई गाय नहीं है

मैं कवि हूँ
और अब ख़बरें लिखता हूँ
जबकि उन ख़बरों में
मैं होता नहीं हूँ
क्योंकि कवि 
कविता में होता है
और कविताएँ अब
बची नहीं हैं मुझमें
क्यों कि अब
मुझमें बचा नहीं है
प्रेम !
रोज- रोज हत्याएं
सत्ता की खुली छूट
मेरी आँखों का पानी सूखने लगा है
अब शायद बह निकले लहू मेरी आँखों से
गरीब अपना घर छुड़ाना चाहता है
पर उसे देना होगा
गाय की भलाई के लिए टैक्स
टैक्स के रूप में जिन्दगी भी ले सकती है सत्ता
गरीब को मरना होगा
गौ-माता की जिन्दगी के लिए
यह राजकीय आदेश है
सुनो, सत्ता !
मेरी माँ कोई गाय नहीं है
मेरी माँ इन्सान है
और उन्होंने मुझे
इंसानों के लिए मरने की सीख दी है |




Wednesday, April 5, 2017

इंसानी लाशों पर महानता की कहानियां

महान सम्राटों और साम्राज्यों की
महानता की कहानियां
लिखी गयी हैं
लाखों -करोड़ों इंसानी लाशों पर
इतिहास में दर्ज़ तमाम महानताओं की बुनियाद में 
करोड़ों इंसानी लाशें दबी हुई है
आतंक और अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए
पहले राजा छोड़ देता था
अपने एक बेलगाम घोड़े को
अवैध रूप से जहाँ तक
चला जाता था घोड़ा
वहां तक फैल जाता था राजा का साम्राज्य
या फिर
राजा करता था
कलिंग जैसे किसी शांतिप्रिय राज्य पर
अवैध चढ़ाई |
अश्वमेध के लिए अब
घोड़े नहीं बचे हैं राजा के पास
राजा के पास अब
केवल गौशालायें हैं !

Saturday, April 1, 2017

शरत बाबु लौट आइये अमीना , गफ़ूर और महेश आपसे सवाल करना चाहते हैं

ओ आमीना के अब्बा
ग़फ़ूर भाई
अच्छा किया तुमने कि
अब तुम उन कट्टर खोखले ब्राह्मणों के गांव में
नहीं रहते 
शरत बाबु ने बहुत अच्छा किया था
कि , तुम्हारे गांव छोड़ने से पहले ही
महेश को तुम्हारे हाथों मरवा दिया था
ब्राह्मणों को तो यही लगा था कि
तुमने एक बैल की निर्मम हत्या की थी
पर सच तो यह था कि
तुमने ब्राह्मणों की गालियों से मरने से
महेश को बचाया था
मुझे तो नन्ही आमीना की आँखों में
अब दिख जाता है
खेलता -मुस्कुराता महेश
आमीना उसे भात का माड़ पिला देती आज भी
पर ग़फ़ूर की झोपड़ी में अनाज का एक दाना नहीं बचा है
आज देश आज़ाद है
दस्तावेज पर तो यही लिखा है
और आजादी के बाद ख़त्म होगी भुखमरी ,
भेदभाव,
और मिलेगा न्याय और अधिकार बिना भेदभाव !
पर ऐसा हो नहीं सका |
शरत बाबु लौट आइये
अमीना , गफ़ूर और महेश
आपसे सवाल करना चाहते हैं।
 ----
मैं ,
आपका एक पाठक
नित्यानंद गायेन

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...