Saturday, October 30, 2010

तुम बच निकलोगे किउंकि ---

बधाई हो
तुमने तुमने जीताये
अनेक स्वर्ण पदक
किन्तु मुझे याद है ---
उन पदकों को कंठहार करने से पहले
तुमने झुकाए थे अपना मस्तक  दुनियां के सामने

खेल थे राष्ट्र मंडल
तुमने किया अपना मंगल
बनाये तुमने नोटों का जंगल
जनता का क्या
थोड़ा शोर मचाएगी
फिर चुप हो जाएगी  थककर
जांच कैसी भी हो
तुम बच निकलोगे किउंकि ---
जांच दल के सदस्य तुम्हें जानते हैं
और जानते हैं तुम्हारी पंहुच कहाँ तक है.

यह जाँच वैसी होगी
अब तक जैसे होती आई
तब तक चलेगी
जब तक जनता भूल नही जाती या --
कोई नया घोटाला
सामने नही आता
तब इसे छोड़ कर उसकी जाँच होगी .

आधुनिक दिवाली

दिवाली के मिठाइयों
अब मिलने लगा है  रंग
सब जानते हैं  फिर भी कोई होता नही दंग
खाकर वही  मिठाइयाँ
हो जाते सब मग्न

मिलावटी घी / तेल से
जलते हैं अब दीये
रात निकलकर देखो सब रहते हैं पिये

बच्चों का हाथ अब पहुँचता नही
बड़ों से चरणों तक
रुक जाता है आकर घुटनों तक

पंडित पड़ता नही मन्त्र
उनका काम करता है
सी . डी . प्लयेर नामक यंत्र
यही है त्योहार मानाने का आधुनिक तंत्र .

भारतीय किसान को सरकार का अभिशाप

जब तक तुम जियोगे
दाने - दाने को तरसोगे
समझे किसान ?
तुम्हे क्या लगता है
अंग्रेज़ यहाँ से चले गए
वे अब भी मौजूद हैं
हमारी व्यवस्था में
क्या तुम्हें अहसास नही होता
उनके होने का
दलाल नेताओं के व्यवहार से ?

Thursday, October 21, 2010

सब कुछ आम

इस देश में
सब कुछ आम
आदमी आम
लूट आम
भ्रष्ट्राचार आम 

केंद्र छोड़कर भागे वाम

विपक्षी कर रहे राम - राम 

कलमाड़ी खा रहा खुले आम - 

सरे आम
कांग्रेस कहती
मत लो नाम
गाँधी जी कहे हे राम.

Saturday, October 2, 2010

--तुम्हारा कृषि मंत्री

किसान तुम फसल उगाओ

हम उसे बेचेंगे

मुनाफा कमाएंगे

हवाई यात्रा करेंगे

बच्चों को घुमायेंगे

चिंता मत करो

तुम्हे -

कर्जा हम दिलवायेंगे

तुम सिर्फ व्याज भरते रहना

जीवनभर यूँ ही मरते रहना

अपना काम करते रहना

हमारा क्रिकेट देखते रहना

किन्तु एक काम करना

हमसे कभी

रोटी मत मांगना

--तुम्हारा कृषि मंत्री

जिधर देखो लहू के प्यासे

सफेद पोशाक का चोला ओड़ कर
शैतान घुमे हैं आंगन में
अशुर भी आज शर्मसार है
इन्सान की ऐसी हरकतों से
जिधर देखो लहू के प्यासे

...लम्बी तिलक
लम्बी दाड़ी
सिर पर टोपी और
कुछ अस्त्रधारी

बेरोजगार सब घुमने वाले
पड़ गए हैं इनके पाले
कौन जाने इनके मन के जाले
न राम जाने न रहीम जाने
किसी का कहना कभी न माने
अब क्या हो ऊपरवाला जाने

सावधान रहना इनसे
मुंह मत लगना इनके
यह कब हुए किसी के ?

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...