Sunday, August 11, 2013

खोजता हूँ एक जंगल

धम्म स्स्स SSSS....
भूस्म ....भौं ..भौं 
गर्र... गर्रर .......
हूस्स ...धत्त ....

जी हाँ ,इनदिनों 
कुछ ऐसी ही भाषा में 
बात कर रहे हैं मेरे समाज में लोग 
आपकी तरह 
मैं भी सुनता हूँ 
पर उस समय मैं
खोजता हूँ एक जंगल
अपने आसपास
मैं कुछ जानवर खोजता हूँ

मन करता है
जंगल में जाकर खींचू उनकी कुछ तस्वीरें
तस्वीर खींचते हुए मुझे देख
वे समझ लेंगे
मैं आया हूँ
इक्कीसवीं सदी की इंसानी जंगल से |

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...