Saturday, January 26, 2013
Sunday, January 20, 2013
कितनी सुरक्षित है रात ?
चांदनी की पनाह में
कितनी सुरक्षित है रात |
देखा है सबने
पहाड़ों से घिरा हुआ
खामोश मैदान को
तभी अचानक आती है
कुछ तेज कदमों की आहट
कांप उठते हैं
ओस में भीगी हुई घास
सन्नाटा टूटता है
रात का
पहाड़ों पर दिखने लगती हैं
दरारें ..
उस पार गांव की झोपड़ी के द्वार पर
एक बूढ़ी माँ ताकती है
शहर में मजदूरी करने गया
अपने बेटे की राह .....||
Saturday, January 12, 2013
१९९६ में लिखी एक कविता
हम खो देंगे
अपनी पहचान
हमसे अधिक उन्हें भय है
इस बात का
हमारे मैले वस्त्र
मैले तन
उन्हें हौसला देते हैं
हमें गाली देने का
चोर और नीच कहने का
हमारे पूर्वजों ने
हमें मजबूर किया गिडगिडाने को
मंदिरोंके पत्थर के आगे
जिन्हें उन्होंने ईश्वर कहा
और उम्मीद लगाई न्याय की
आओ उठाये हम
एक -एक पत्थर
पत्थर तोड़ने के लिए ...
Thursday, January 10, 2013
लिखने से अच्छी है ख़ामोशी ,
केवल शब्दों
और अक्षरों के सहारे
व्यक्त नही करना चाहता
आक्रोश ,संवेदनाएं
चाहता हूँ
वे सभी अक्षर और शब्द
जो उबल रहे हैं
मेरे और आपके भीतर
क्रांति बनकर बाहर आयें
वे सभी
जो केवल झंडा लेकर कर रहे हैं
बदलाव की मांग
मैं देखना चाहता हूँ
बदलाव उनकी भाषा की व्याकरण में
औपचारिकता के नाम पर
लिखने से अच्छी है
ख़ामोशी ,
खामोश मनुष्य के भीतर भी दबी रहती है
एक बीज कविता ......
और अक्षरों के सहारे
व्यक्त नही करना चाहता
आक्रोश ,संवेदनाएं
चाहता हूँ
वे सभी अक्षर और शब्द
जो उबल रहे हैं
मेरे और आपके भीतर
क्रांति बनकर बाहर आयें
वे सभी
जो केवल झंडा लेकर कर रहे हैं
बदलाव की मांग
मैं देखना चाहता हूँ
बदलाव उनकी भाषा की व्याकरण में
औपचारिकता के नाम पर
लिखने से अच्छी है
ख़ामोशी ,
खामोश मनुष्य के भीतर भी दबी रहती है
एक बीज कविता ......
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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
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एक नदी जो निरंतर बहती है हम सबके भीतर कहीं वह नदी जिसने देखा नही कभी कोई सूखा वह नही जिसे प्यास नही लगी कभी मैं मिला हूँ उस ...