Friday, August 31, 2012

कमाल हो तुम

बंदूक,
कुपोषण 
दंगे ,आगजनी 
नफ़रत 
इन सबके बीच रहकर भी 
तुम लिख लेते हो 
प्रेम कविता ....?
सच में कमाल हो तुम ....

Thursday, August 30, 2012

किन्तु फीका पड़ चूका है मेरा चेहरा ....


उन्होंने कहा
हम हैं भारतवासी
हमें गर्व है ..

मैंने कहा
मैं भी हूँ भारतवासी
और मुझे दुःख है , देखकर
कुपोषण के शिकार बच्चों की तस्वीरें 
सूखे शरीर ,चहरे पर झुर्रिओं के साथ
ज़हर के नीले रंग ढका हुआ 
या फिर फंसी पर लटकता किसान 

होगा तुम्हें गर्व
पर मुझे खेद है
सीखने, खेलने की उम्र में
मजदूरी करता बचपन
मेरे देश में 

चमकता होगा
तुम्हारा राज्य ,
और देश
किन्तु फीका पड़ चूका है
मेरा चेहरा .....

Tuesday, August 28, 2012

क्या भूल सकता है नाग डसने की कला ?

सदियों तक जो
शोषक रहे
बन बैठें आज मसीहा
ऐसा सम्भव है क्या
क्या भूल सकता है नाग
डसने की कला ?

वे सदियों तक 
दबाते रहे  हमें 
कुचलते रहें 
नकारते रहें हमारी नश्ल को 
पानी की तरह बहाया खून हमारा 
और खेलते रहे होली 

आज सदियों बाद 
विचलित हैं 
कि कैसे उठ खड़े हुए हम 
क्यों बनी थोड़ी पहचान हमारी 

नही ,नाग कभी नही भूलता 
डसने की कला 
बस हमें ही रहना होगा सजग 
और सावधान ...

Monday, August 27, 2012

आज के 'डेली हिंदी मिलाप' हैदराबाद में प्रकाशित मेरी एक रचना ....


छोड़कर गांव 
जो चले आये थे 
शहरों की ओर 
आज टूट चुके हैं
अपने सपनों के साथ

गांव में उनका मूल्य रखा गया था
अटठाईस मात्र
शहर में आकर हुए
केवल बत्तीस का
गांव ओर शहर के बीच उनकी कीमत
केवल चार रुपए ?

ये शहर
जहां चुकानी पड़ती है
कीमत हर साँस की
यहाँ जीवन टिका हुआ है नोटों पर
यहाँ रोज लगते हैं
करोड़ों के दावं
जिसमें बिकता है केवल आदमी
कैसे बचते सपने ?

हम चले आ रहे हैं
शहरों की ओर
आदर्श जीवन की चाह में
और उठा लिए जाते हैं
किसी जुलूस के लिए आये दिन

जल ,जमीन और जंगल
फिर सोचना होगा
गांवों की ओर हमें लौटना होगा ||

Sunday, August 26, 2012

दो कवितायेँ


     १.मेरा एक पत्र तुम्हें

प्रिय मुंशी जी , 

आपका 'होरी' आज भी
यहीं रहता है| 

शरत बाबू का 

गफूर भी जी रहा है

ब्राह्मणों के उस गांव में 

उसी हालात में 
अमीना और महेश के साथ
बस महेश अब किसी के 

खेत में नही घुसता 

सड़कों पर घूमता है आवारा




नागार्जुन अब भी सुना रहे हैं हमें 

बलचनमा की कहानी .
.
और बाबा बटेसरनाथ 

खो चूका है, अपना धड़

टाटा, अंबानी या किसी जिंदल के हित की पूर्ति में 



आप में से किसी का पता नही है मेरे पास 

फिर भी भेज रहा हूँ ये पत्र 

यदि मिल जाये किसी दिन 

कुछ लिखना जबाव आप सभी 



मेरा पता वही है 

जो आपका था कभी .....







२.मुल्क तो मेरा भी मासूम 



मुल्क तो मेरा भी मासूम 
और तेरा भी 
वही जमीं , वही आसमान
वही पहाड़ ,नदियाँ , झरने 
परिंदे ,हवा , पानी
फिर कहाँ से उग आये 
साज़िस भरे दरिंदों की भीड़

Friday, August 24, 2012

भागीरथी को देखकर

एक शाम बैठा था 
विशाल ,चंचल भागीरथी के किनारे 
निरंतर बहती जल धारा 
कहाँ से पाई है 
इसने प्रेरणा ?

उसके मध्यम लहरों को देख 
उठीं लहरें कई
मेरे भी मन में
ऊपर फैला नीलाम्बर
दूर तक
उसके आंगन में खेलते
शाम -श्वेत मेघों के टुकड़े
क्षितिज पर ढलता सूरज
एक क्षण नही भूलता
वह मनोरम दृश्य

नदी के मध्यम लहरों को
टूटते देख किनारे पर
मुस्कुरा उठा था
मेरा छोटा भाई
क्या सोचा था उसने ?

जमीं समा रही है
इस नदी के गर्भ में ,अहिस्ता -अहिस्ता
निरतंर लगी हुई है
अपने विस्तार में
सागर से मिलने को आतुर
मंद पड़ गई है
मुहाने पर आकर

दूर उस पार
कुछ बौने पेड़ों के साये
मुग्ध हो रहे थे
देख कर इसकी विशाल काया

अचानक विचलित हो उठा था
मेरा मन
सोचकर इस नदी का भविष्य
क्या यूँ ही बना रहेगा
इस जलधारिणी का यह भव्य रूप सदा ?

सहसा टूट टूट गई
मेरे मन की सारी लहरें
भागीरथी की लहरों की तरह .............

Tuesday, August 21, 2012

बड़ा ही भयंकर था गोधरा का सच

बड़ा ही भयंकर था 
गोधरा का सच 
पीढ़ी दर पीढ़ी 
सपनों में आकर डराता रहेगा हमें 
भूल न सकेंगे हम चाहकर भी 
भय के कण -कण में
समाया हुआ है गुजरात

पर ,मैं भूला नही हूँ
सैंतालीस ,पचहतर, चौरासी और हाल ही के
असम और मुंबई  को भी

मैं रखता हूँ इन सब को 
गोधरा के साथ
तुम सबकी सहमती
और असहमती के बाद ...

Monday, August 20, 2012

वो खुश था खिलाकर मुझे , अपने हिस्से की रोटी

आज मैं ३१ वर्ष का हो गया , दोस्तों ने शुभकामनाओं की ढेर लगा दी ..बहुत अच्छा लगा . आज ही एक  अनोखे अंदाज़ में मैंने ईद और जन्मदिन मनाया .आपके साथ साझा कर रहा हूँ ......
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Saturday, August 18, 2012

तुम भी बेचैन हो शायद ओ चाँद .

हर बार खोलता हूँ द्वार 
कि , हो जाये तुम्हारा दीदार
 
काले मेघों का जमघट 
हटा नही अभी 
तुम भी बेचैन हो शायद 
ओ चाँद ....

Friday, August 17, 2012

शामिल नही एक भी शहीद

इनके पास है 
देश भक्तों की एक लम्बी सूची 
शामिल नही एक भी  शहीद
ये सभी ...
जमीन ,इमारतें , नदी तालाब 
को ही मानते हैं देश 

इनके देश में नही रहते 
हम -तुम जैसे 
आम लोग ..

Saturday, August 11, 2012

तुम्हारे बिखराए शब्दों को

तुम्हारे बिखराए शब्दों को 
समेटकर , लगा दिया है मैंने 
पंक्तियों में डाल कर 
छंद बनाया है |
देखो एक नज़र 
बनी है कोई कविता 
या कोई मिलन गीत ?

यदि होते हम रेल पथ



यदि तुम
और मैं ,
बन जाते रेल पथ
दूरी रहती हमारे बीच
फिर भी , हम साथ –साथ चलते
मंजिल तक

हमारे सीने पर 
जब गुजरती
भारी –भारी गाड़ियां
हम साथ –साथ कांपते
पर , चलते साथ –साथ
मंजिल तक दर्द के अनुभवों के साथ

कोई कर्मचारी
आकर लगा जाता ग्रीस
हमारे जोड़ों पर
जंग से बचाने को हमें
हम साथ –साथ चलते
मंजिल तक ......||

Sunday, August 5, 2012

यशगान , अपने –अपने होने का

वे, जो गा रहे हैं 
यशगान , अपने –अपने होने का 
आर्य महान 
डूबे हए हैं घृणित कृत से 
सर से पांव तक |

ऊँची है इनके
कुँए की दीवारें

ये सभी
उबाल कर खाते हैं
दलित का, गरीब के हिस्से का अनाज |

रात के ..
कुकर्म के बाद
अर्घदान करते हैं रवि को
आकाश का सूरज मुस्कुराता है
इनकी बुद्धि पर
कभी –कभी मैं भी .....||

Saturday, August 4, 2012

साज़िस की जड़ें


बड़ी ज़हरीली होती हैं
साज़िस की जड़ें
बड़ी तेजी से फैल रही हैं , ये जड़ें
हमारे भीतर
हमारे खून में घुल कर
रूप बदल –बदल कर
कभी टी.वी. के रास्ते
कभी भोजन से होकर
फैशन के बहाने
कभी कपड़ों में लिपट कर
बाज़ार के रास्ते से
घुस चुकी हैं ,
हमारे समाज में
हम देख रहे हैं
चौखट पर खड़े , निहत्था 
असहाय योध्या की तरह .....

Thursday, August 2, 2012

मैं, बनकर एक माली संवार रहा हूँ तुम्हें .....

मैं रोज देखता हूँ सपना 
तुम्हारे लिए 
तुम सब मुस्कुरा रहे हो 
फूलों की तरह 
धरती के इस गुलिस्तां में 
और मैं, बनकर एक माली
संवार रहा हूँ तुम्हें .....

हे नन्हे फरिश्तों 
तोड़कर सब भेद 
तुम आना मेरे इस
सपनों के बगीचे में
करना साकार मेरे निष्पाप स्वप्न को
और ले जाना
अपने –अपने हिस्से की
मीठी –मीठी मुस्कान

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...