Saturday, September 28, 2019

फिर भी एक चिंगारी का होना जरुरी है

दोस्त अब अक्सर देते हैं सलाह
चुप रहो !
सत्ता ताकतवर है
हालांकि उनकी सलाह में
मेरी जान की फ़िक्र है
फिर भी मुझे लगता है यह सलाह किसी दोस्त की नहीं
सत्ता पर बैठे किसी अधिनायक के वफ़ादार की सलाह है
मेरे दोस्त मुझे जानते हैं
मंजूर है राजद्रोह का आरोप
झुकना नामंजूर है मुझे
गुलामी से बड़ा अभिशाप कोई और नहीं
चापलूसी कायरता की पहचान है
मौत के डर से गुलामी
मौत से बदतर है
इतिहास गवाह है
डरने वाला कभी बच नहीं पाया
बिजली गिरने के भय से
वृक्षों ने उगने से कभी मना नहीं किया
बिजली को तो गिरना ही है
बेहतर है मैदान नहीं , हम पेड़ बन कर उगे
खड़े रहें तन कर
जल जाएँ तो भी पेड़ ही कहलायेंगे
समतल होने में गुलामी का खतरा ज्यादा है
जानता हूँ , यह क्रांति के लिए सबसे प्रतिकूल समय है
फिर भी एक चिंगारी का होना जरुरी है !

Saturday, September 21, 2019

कविता नहीं बजट है

उदास कवि की पूर्व प्रेमिका भी
अब कवि हो गई है
कवि जाम लगा रहा है
वो मंच पर कविता पढ़ रही है

मने बजट के बाद बजट सुने  हो  कभी
यहां बजट नहीं दिवालिया की नुमाइश है

प्रेम कभी था नहीं
ज़रूरत के समझौते थे

बात कवि के प्रेम और प्रेमिका की नहीं
सत्ता और जनता की मान लीजिये

कवि जन का है
प्रेमिका सत्ता चाहती है

फेमिनिस्ट नाराज़ हो सकते हैं
पर उन्हें पता होना चाहिए
कवि  लेफ्टिस्ट है

दरअसल,
कवि को , लेफ्ट को
घमंड बहुत है
कि, उसके बिना कोई बढ़ नहीं सकता आगे

बंगाल -त्रिपुरा  के बाद
कवि की प्रेमिका ने दिखा दिया
कविता लिख -पढ़ कर कैसे बढ़ते हैं आगे

कवि के नाना ने कहा था -ज्ञान से नहीं , धन से बढ़ता है सम्मान
कवि के दोस्त के नाना ने भी कुछ ऐसा कहा था

नाना को हराने की ज़िद में
कवि नंगा हो गया

कवि  नकली है  शायद
हैलो नहीं , लाल सलाम कहता है
प्रेमिका अब जय श्रीराम बोलती है !

Thursday, September 19, 2019

हर जगह जश्न है !

कश्मीर बंद है
फिर भी सामान्य है
सत्ता जो कहे
वही सर्वमान्य है
धन्य है-धन्य है
नाराज़ कुछ अन्य हैं
लोकतंत्र में अब यही सब
मान्य हैं ?
सवाल अब अमान्य है
भीड़ के हवाले है देश
यही सौजन्य है
वे सब अन्य हैं
कहलाते थे जो जन हैं
तानाशाह का मन है
बाकी सब सन्न हैं
धन्य है धन्य हैं
राजा बहुत प्रसन्न हैं
जन मरें लिंचिंग में
हर जगह जश्न है

Saturday, September 14, 2019

किसी एक पर दोष क्यूँ हो भला ?

कुछ अनकहीं बातें
जो कभी कहना चाहता था
तुमसे
उनको भूला दिया है
मौसम बहुत बदल गया है
अब गर्मी से अधिक
उमस होती है
प्रेम नहीं, अब
समझौते होते हैं
मैंने , खुद को कवि मानना छोड़ दिया है
प्रेम के वादों को
सरकारी घोषणाओं की सूची में
डाल दिया है
तुम सरकार हो
मैं आम नागरिक
तुम्हें खूब याद हैं
मेरे अपराध
तुम अपना वादा भूल गये हो
अब और रोना नहीं है
प्रेम का अपमान अब थमना ही चाहिए
समझदार होकर सवाल तो अब करना ही होगा
समझौते से अब निकलना होगा
शर्तें दोनों ओर हों
किसी एक पर दोष क्यूँ हो भला ?

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...