Thursday, January 22, 2015

शर्मिंदा नहीं होता सपने में प्रेम करते हुए

मैं अक्सर खो जाता हूँ सपनों में
और कमाल यह होता है कि ये सपने मेरे नहीं होते
दरअसल सपनों में खो जाना कोई कला नहीं
न ही है कोई साज़िस
ये अवचेतन क्रिया है एक

मेरे सपनों में अचानक
उनका आगमन  बहुत सुखद है
मैं बहुत खुश होता हूँ उन्हें पाकर
सपनों में,
रेत पर खेलते उस बच्चे की तरह मैं भूल जाता हूँ
हक़ीकत को
और गढ़ता हूँ  प्रेम की हवाई दुनियां
एकदम फ़िल्मी

अभी यह सर्द मौसम है
रजाई की गर्मी में सपने भी हो जाते हैं गर्म और मखमल

 सपने में अचानक लगती है मुझे  प्यास
और फिर बोतल मुंह से लगाकर पीते हुए पानी
गिरता है सीने पर
टूट जाती है नींद

मैं हँसता हूँ खुद पर
पर शर्मिंदा नहीं होता
सपने में प्रेम करते हुए .

Tuesday, January 13, 2015

हंसाने वाले अब मुझे सताने लगे हैं

मैंने गुनाह किया
जो अपना दर्द तुमसे साझा किया

अब शर्मिंदा हूँ इस कदर
कोई दवा नहीं

मुझ पर इतराने वाले अब कतराने लगे हैं
हंसाने वाले अब मुझे सताने लगे हैं

बातें अंदर की थीं
अब बाहर आने लगी हैं

Thursday, January 1, 2015

हमें भ्रम हैं कि हम जिंदा हैं आज भी

आकाश पर काले बादलों का एक झुंड है
बिजली कड़क रही है
धरती पर आग बरसेगी
इस बात अनजान हम सब
डूबे हुये हैं घमंड के उन्माद में
हम अपना -अपना पताका उठाये
चल पड़े हैं
विजय किले की ओर

वहीँ ठीक उस किले के बाहर
बच्चों का एक झुंड
हाथ फैलाये खड़ा है
हमने उन्हें देखा बारी -बारी
और दूरी बना रखी
कि उनके मैले हाथों के स्पर्श से
गन्दे न हों हमारे वस्त्र
उनके दुःख की लकीर कहीं छू न लें
हमारे माथे की किसी लकीर को
हमने अपने -अपने संगठन के बारे में सोचा
सोचा उसके नाम और उद्देश्य के बारे में
हमें कोई शर्म नहीं आयीं

हमने झांक कर भी नहीं देखा अपने भीतर
हमारा  ज़मीर मर चुका  है
और हमें भ्रम हैं कि
हम जिंदा हैं आज भी ..??

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...