Friday, December 29, 2017

सर्द मौसम में मीठी होती है सुबह की धूप

अँधेरे की शिकायत नहीं करूंगा
रौशनी का  एक गुच्छा तुम्हें दूंगा
तुम केवल उसे किसी मार्ग पर लगा देना
ताकि पथिक पहुँच सकें अपनी मंजिल तक
बिना गिरे
उदासी की बात नहीं करूंगा
एक मुठ्ठी मुस्कान दूंगा तुम्हें
तुम उसे बाँट देना
सहमे हुए बच्चों में
हताश होने पर
तुम्हें सुनाऊंगा क्रांति की महान कहानियाँ
अंधकार रात में
तुम्हें चाँद के किस्से सुनाऊंगा
तनहाई में तुम्हें बताऊंगा सागर की विशालता
हम पंछियों से सुनेंगे
आकाश के बारे में
मरुस्थल में जीवन के बारे में जानेंगे
धूप में रेत को चमकते हुए देखेंगे मिलकर
सर्द मौसम में मीठी होती है
सुबह की धूप
आओ मुस्कुराना सीखें

Thursday, December 28, 2017

उसने खोज ली एक बहती नदी मेरी आँखों में

मैं खोज रहा था आग
आँखों में,
उसने खोज लिया प्रेम
मेरी आँखों में
मैं तो खोज रहा था पत्थर
उसने खोज ली एक बहती नदी मेरी आँखों में
दरअसल मेरी आँखों में बहती नदी
उसकी वेदना की कहानी है
मैंने देखा झांक कर उसकी आँखों में
खुद को पा लिया |

Monday, December 25, 2017

अहसास तस्वीरों से ज्यादा ताजा है

अहसास
तस्वीरों से ज्यादा ताजा है
हमने वसंत को छुंआ था मिलकर
अब इस तरफ उदासी है
पत्थरों ने 
मना कर दिया है ओस
ओढ़ने से
पत्तियों ने अपना लिया है
पीला रंग
मेरी आखों का नमक
खो गया है
आओ कभी सामने तुम भी
हिम्मत के साथ
मुझे बेनक़ाब करो !
मैं, तुम्हारा कवि हूँ |

Saturday, December 23, 2017

अतुल्य भारत का"अतुल्य ईश्वर"

ख़ुद को फ़क़ीर घोषित कर देने भर से
कोई फ़क़ीर नहीं हो जाता
जिसके स्वागत में खड़े हो जाते हैं लाखों सेवक 
मरने -मारने को बिना सोच -विचार के
वह किसी कंपनी के बाबा द्वारा घोषणा के बाद भी
ऋषि या संत नहीं होता
हाँ, अक्सर क़ातिल को ही
ईश्वर का अवतार या वरदान मान लिए जाने की
परम्परा प्राचीन है इस देश में
ईश्वर या उसका अवतार जो मौत के बदले या उसके अनुसार
तय कर देता है किसी की मौत
उसकी हत्या को पाप के किसी श्रेणी में नहीं रखा जाता कभी भी
ईश्वर अंतिम हत्या का आदेश कब देगा
किसी को नहीं पता
मतलब उसके पाप के अंत का
किसी को नहीं पता
किन्तु , हमने कहानी और कथाओं में ज़रूर सुना है कि
हर पाप का अंत निश्चित है एक दिन
हैरानी यह कि
उस एक दिन का पता
किसी को नहीं है
भक्त इसे ईश्वर की लीला या माया कहते हैं
जिसे सामान्य जन कभी समझ नहीं पाया है
धन्य है हमारा देश
जहाँ प्रदेश और जलवायु के अनुरूप ईश्वर ने
अपना रूप -रंग बदल कर पत्थरों की मूर्तियों के रूप में
खुद को स्थापित किया
कैलेंडरों में छप गये
पूजा की विधि तय की
और भव्य देवालयों का निर्माण किया भक्तों ने
धन्य हैं वे भक्त
जिन्होंने देवों की भाषा समझ लिया
आम जन को उनका अनुयायी बनाया
लाखों -करोड़ों दान
जिसका कोई हिसाब लेने वाला नहीं
कोई इनकम टैक्स नहीं
देवता किसी देश का नागरिक भी नहीं
वह मतदान नहीं करता
सरकार नहीं चुनता
सरकार उन्हें चुनती है
अपने फायदे के लिए
कोई अदालत नहीं उनके लिए जहाँ देनी पड़े उन्हें
सफाई उनके नाम पर लिए गये किसी फैसले के विरोध में
देवता को सब माफ़ है
भक्तों को भी खुली छूट है
अपनी मन -मर्जी की !
जबावदेही केवल आम जन की है |
अतुल्य भारत का"अतुल्य ईश्वर"!

Sunday, December 17, 2017

कवि भी खुद को बचाने के फ़िराक में है

यह दौर है
जब हर कोई दिखा देना चाहता है
कि वो क्या है
और इसी दिखाने की चाह में
वह सामने वाले को नीचा दिखाना चाहता है 
और उसे पता ही नहीं चलता कि
वह खुद कितना नीचे गिर चुका है
वैसे इन दिनों यदि आप किसी पार्टी के सदस्य हैं
तो, किसी नीच को 
नीच कहने से बचिएगा 
वरना आपकी सदस्यता समाप्त हो सकती है
आप गुट से बाहर किए जा सकते हैं
मतलब साफ़ है कि
अब नीच को नीच कहना उचित नहीं है
क़ातिल को क़ातिल भी न कहिये
वरना अदालत के ऊपर फ़हरा दिया जायेगा
किसी संगठन का झंडा
और आप झंडू बने देखते रह जाओगे
ऐसी बातों पर भावुक होना मूर्खता है
व्हाट्स एप्प में लगे रहिए
मन बहल जायेगा
दिन गुजर जायेगा
अपने -अपने ज़रूरत के अनुसार
प्रेमी-प्रेमिकाओं ने एक -दूजे को बेवफ़ा क़रार दिया
दुनिया को हंसी आई
पर उन्हें शर्म आई नहीं
धर्म की गर्म हवा फ़ैल चुकी है आकाश पर
नाक ढक कर भी साँस लेंगे तो
रूह जल उठेगी
बेहतर है टीवी पर बिग बॉस देखिये
मन बहल जायेगा
दिन गुजर जायेगा
किसान को मरना ही है
तो मरेगा ज़हर या फांसी से
मेरा कवि
ऐसी कविता लिख कर
खुद को बचाने के फ़िराक में है !

Friday, December 15, 2017

राजा की पसंद सर्वोपरि है

लाशों की मंडी पर
बैठा है लोकतंत्र
इनदिनों
पुलिस जानती है राजा की पसंद 
उसे पसंद है
नरमुंडों की घाटी
राजा की पसंद सर्वोपरि है !
यह राजाजी के शिकार खेलने का
वक्त है |

रचनाकाल :2016 

Monday, December 11, 2017

कुछ कविताएँ जो खो गई थीं



1.
किसान बोलता नहीं
शोषण की कहानी
कर लेता है ख़ुदकुशी
आदिवासी बोलते हैं
लड़ते हैं अपनी जमीन -जंगल के लिए
पुलिस मार देती है गोली
छात्र उठाये आवाज़ अपने हक़ के लिए
भर दिए जाते हैं जेल |
लोकतंत्र की किताब में
ये नये अध्याय हैं !
इन नये लिखे अध्यायों को बदलने के लिए
लड़ना तो होगा |

2.
वे चाहते थे कि
मैं भी उनकी भाषा में बोलूं
न बोल सकूं तो कम से कम उनकी भद्दी भाषा का समर्थन करूँ
हमसे हुआ नहीं ऐसा 
हम न उनकी भाषा में बोल सकें 
न ही उनका समर्थन कर सकें 
उन्हें आग लग गई 
उनके पास भी गौ रक्षकों की एक पोषित भीड़ है 
जो कभी भी 
कहीं भी किसी भी विरोधी की हत्या कर सकती है 
पीट कर न सही 
अपनी भद्दी भाषा में वे किसी की हत्या करने में सक्षम हैं 
मैंने अपना दरवाज़ा बंद कर दिया उनके लिए
उनके डर से नहीं
अपनी भाषा को बचाने के लिए
हम नहीं गा सकते जयगान
उन्होंने मुझे कुंठित कहा
गद्दार भी
जबकि हमने उनका नमक कभी नहीं खाया
सत्ता के कई रूप हैं
पहचानने का विवेक होना चाहिए।


3.
क्यों लिखूं कविता
इस बेशर्म वक्त पर
जब सब तलाश रहें हैं उम्मीद 
और उम्मीदें मजबूर हैं आत्महत्या को 
यदि आपको लगता है कि 
मैं गलत सोच रहा हूँ 
तो , बताइए कि क्यूँ बचा नहीं पाए हम अपने किसानों को मरने से 
क्यों भूख से मर गये सैकड़ों बच्चें 
लड़कियां क्यों डरी हुई हैं
चलिए आप यह बता दीजिए कि
किस पर भरोसा करें इस वक्त
जिन्हें चुनकर भेजा था हमने संसद और विधानसभा में
उनका मुखौटा उतर चुका है
ऐसे में आप मुझे बताइए कि
कविता लिख कर क्या करूँगा
कविता अब बाहर निकलना नहीं चाहती
बहुत सहमी हुई है
मेरी तरह ....

4.
तुम्हारे संघर्ष की कहानी में 
छिपी हुई है 
मेरी नई कविता 
करीब आओ तो 
पढ़ सकता हूँ उसे
मैं तुम्हारी आखों में।

5.
वो तमाम कमियाँ
बुराई और कमजोरियां
जो इन्सान में होती हैं
मुझमें भी है |
शायद
इसलिए
तुमसे करता हूँ
प्रेम !

6.

नि:शब्द है 
हमारा दर्द 
आओ,
आँखों से साझा करें इसे 
हम, एक -दूजे से

दिल्ली में बारिश और मध्य रात्रि

इस वक्त
जम कर बरस रहा है मेघ
जाने किस गम ने उसे सताया है
वह किस दर्द में चीख़ रहा है ?

गौर से सुनो
वो हमारी कहानी सुना रहा है |


Friday, December 8, 2017

सत्ता को मंजूर नहीं कोई सवाल

मौसम किस कदर बदला देखिये
हत्यारे को माफ़ी मिली
बेगुनाह को फांसी !
रुकी नहीं है अभी
सत्ता की हँसी !
टीवी रोज दिखाए हत्याओं की कहानी
हत्यारे को नहीं
बलात्कार हुआ सबको पता चला
बलात्कारी का चेहरा ढका है
कोई पूछे सवाल - क्यों ? 

मौसम किस कदर बदला देखिये
आग खुद करे अब जलन की बात
हत्यारा करने लगा है
हमारी सुरक्षा की बात
जबकि उसके हाथों में
खून के धब्बे बाकी है अभी तक
उसके जयकार के शोर में
भूख से रोते बच्चे की मौत हो जाती है हर रात
सिपाहियों की कदमों की आहट ने चीर दिया है
रात के सन्नाटे को
तुम्हें भ्रम है
तुम्हारी बस्तियां सुरक्षित है !

राजा अपने कक्ष से
लगातर हंस रहा है
सहमे हुए हमारे चेहरे देख कर
गूंगी प्रजा राजा की ताकत बन चुकी है
सत्ता को मंजूर नहीं कोई सवाल
राजा ने खुद को ईश्वर मान लिया है |

Thursday, December 7, 2017

हत्यारा इतना साहसी हो गया है

हत्यारा इतना साहसी हो गया है
कि वह ऐलान कर
हत्या कर रहा है अब
बतौर सबूत वह
हत्या का वीडियो बनाकर प्रसारित करता है !
सवाल है कि
उसे इतनी हिम्मत कहाँ से मिली कि
उसने सरेआम और फिर घर में घुसकर
दाभोलकर,
कलबुर्गी,पनसारे और लंकेश की हत्या की
उसने अकलाख, जुनैद और पहलू को मारा
फिर भी इस आधुनिक युग में पुलिस और अदालत को
क़ातिल का कोई सुराग नहीं मिला !
शासन ने ऐलान कर दिया
उसके रामराज्य में ऐसी कोई
वारदात नहीं हुई !


Tuesday, December 5, 2017

अपनी खोई हुई प्रेम कविताएं खोज रहा हूँ

मेरी कई प्रेम कविताएं
खो गई हैं
देखना यह है कि
अब कितना प्रेम बचा हुआ है
मुझमें 
उन कविताओं के बाहर !
नफ़रत के इस दौर में
आसान नहीं है प्रेम को बचाए रखना
इसलिए,
हमने उसे कविताओं में भर दिया था
अब जब कवियों की भी हत्या होने लगी है
कविता को कौन बचाएगा
अपने ही विराट महल में कैद हिंदुस्तान के अंतिम शहंशाह
बहादुर शाह ज़फर ने जब लिखा था -
"क्या गुनह क्या जुर्म क्या तक़्सीर मेरी क्या ख़ता
बन गया जो इस तरह हक़ में मिरे जल्लाद तू "
अब जब प्रेम पर पहरेदारी के लिए
तैयार हैं सरकारी दस्ते
मैं अपनी खोई हुई प्रेम कविताएं खोज रहा हूँ !

Friday, November 24, 2017

तुमसे मिलने की जो आखिरी चाह थी मेरी

अंतिम जंग से पहले 
तुमसे मिलने की 
जो आखिरी चाह थी मेरी 
तुमने, 
उसे समाप्त कर दिया 
अच्छा किया तुमने
जो मुझे पहचानने से
इंकार कर दिया
मौत का जो डर था दिल में
इस तरह ख़त्म कर दिया !

Thursday, November 23, 2017

मुझमें सच को सच कहने का साहस बचा हुआ है अब तक

जस्टिस लोया की मौत की सनसनी वाली
ख़बर को साझा नहीं किया
सरकारी सेवा वाले प्रगतिशील
और जनपक्षधारी किसी लेखक ने
मैंने किया है !
इसका मतलब यह कतई नहीं कि
मैं सबसे निर्भीक और ईमानदार हूँ
पर इतना जानता हूँ
मुझमें सच को सच कहने का
साहस बचा हुआ है अब तक
किन्तु , मैंने अब तक 
नहीं कहा किसी से
तुम्हारे हिस्से का सच

बेईमान नहीं बन सका हूँ अब तक
इसलिए हिम्मत नहीं जुटा पाता हूँ
कि, तुम्हें बे-वफ़ा कह सकूं
मेरा चेहरा, तुम्हारे चेहरे सा न तो मासूम है
न ही आकर्षक
कि सच भी कहूँ तो मान लें हर कोई
तुम्हारे कहे 
झूठ की तरह !

खौफज़दा चेहरे के साथ मुल्क का निज़ाम भी
बोलता है झूठ लगातर
और तब जाहिल आवाम उठता है झूम
ऐसे माहौल में
तुम भी अपने मासूम चेहरे के साथ
मेरी बुराई करो तो
कोई क्यों न करें तुम्हारा यकीन ?
यह युग झूठ पर टिका हुआ है
और मुझे झूठ बोलना नहीं आता
फिर भी बना हुआ हूँ
शायद कोई चमत्कार है !
देखो न,
कि एक जज की रहस्यमयी मौत के खुलासे के बाद भी
किस तरह खामोश है मुल्क,
आवाम और मीडिया
ऐसे वातावरण में
मेरी बात को कौन
और क्यों सच मानेगा ?

Tuesday, November 21, 2017

बुखार में बड़बड़ाना

1.
पहाड़ से उतरते हुए 
शीत लहर ने मेरे शरीर में प्रवेश किया
और तापमान बढ़ गया शरीर का
शरीर तप रहा है मेरा
भीतर ठंड का अहसास 
इस अहसास को बुखार कहते है !
देश भी
तप रहा है मेरे बदन की तरह
और सरकार कह रही है
मामला ठंडा है !
मेरे देश को बुखार तो नहीं है ?
#बुखार में बड़बड़ाना 1

2.
अहिंसा और शांति के पक्षधर गाँधी का
हत्यारा गोडसे का मंदिर 
बनाने वाले
और उस मंदिर के समर्थक
यदि कभी 
शांति और प्रेम की भाषा में
मुझसे बात करने लगें
मैं, उस वक्त
सावधान हो जाऊंगा
वो अपने पक्ष में तर्क देंगे
अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात कह कर
हत्यारा और उसके समर्थक में
कोई अंतर नहीं होता
क्योंकि हत्यारे का समर्थक
भविष्य का हत्यारा होता है
#बुखार में बड़बड़ाना 2

Friday, November 17, 2017

कौन बेगुनाह और कौन अपराधी

मैं बदसूरत हूँ
इसलिए बेईमान कहलाऊंगा
चोर और बेईमानों का आकलन
अपने देश में
चेहरे की सुन्दरता पर निर्भर है !

जैसे धर्म के आधार पर तय कर लिया जाता है
कौन है आतंकवादी
पार्टी के आधार पर तय होता है
गद्दार और देश प्रेमी
ठीक उसी तरह तय होता है
चेहरे की मासूमियत पर
कौन बेगुनाह और कौन अपराधी
वफ़ा और बेवफ़ा के किस्से
बनते हैं एक तरफा बयान से
वक्त कहाँ न्यायाधीश के पास
कि दोनों का पक्ष सुने ?
हमने दोस्त मान कर उन्हें करीब से जाना है
हमारा यकीन ही
हमारा अपराध है
यह विनिवेश का युग है
विनिमय में कुछ तो दीजिए
हमने अपना यकीन दिया
और बदले में
धोखा पाया !

Thursday, November 16, 2017

तोड़ने और नोचने में फ़र्क तो होता है

तोड़ने और नोचने में फ़र्क तो होता है
पर दोनों की क्रियाओं में हिंसा होती है
नोचने का निशान गहरा होता है
हो सकता है दिनों -महीनों तक घाव से रिसता रहे पानी
और टूटा हुआ बिखर जाता है
हम सब इस समय
नोचे जा रहे हैं
तोड़े जा रहे हैं
और हम उन नोचने , तोड़ने वालों को पहचानते हुए भी
लगातर ख़ामोशी से पीड़ा सह रहे हैं
हमारी ऐसी क्या मज़बूरी है ?
बात केवल क्रूर और निरंकुश सत्ता की नहीं है
हमारे आस-पास भी तमाम ऐसे हाथ और नाख़ून हैं
जो तोड़ने - नोचने में माहिर हैं
अक्सर उनकी शिकायत करने से कतराते हैं हम
आखिर हमारी मज़बूरी क्या है
ज़रूरी नहीं कि केवल हाथ और नाख़ून ही नोचें हर बार
इनदिनों शब्द /भाषा भी बहुत धारदार हो चुकी है
और जुबान से नोचने -टूटने का कोई निशान दिखाई नहीं पड़ता
उदास किसी चेहरे को पढ़ना हमने सीखा नहीं अभी तक
मृत देह पर अफ़सोस जताना मानव सभ्यता की प्राचीन परम्परा है
जबकि जीवित किसी मनुष्य को ख़ुशी देना
हमारी आदत नहीं बनी !
मनुष्य सदियों से हिंसा के पथ पर अग्रसर है
वह आधुनिक से अतिआधुनिक होने का दावा करता है
उसका हासिल है -हिंसा , नफ़रत , द्वेष और युद्ध
जंगल,
जमीन,
नदी , पर्वत
और लाखों विलुप्त जीव गवाह है !
अब हत्यारों के मंदिर बनायें जा रहे हैं
अपने देश में !

Monday, November 13, 2017

बच्चों ने शैतान को देखा है

बच्चों ने किसी ईश्वर को नहीं देखा है
पर उन्होंने देखा है जंग और शैतान को
इराक़ में,
अफ़गान में,
या फिर फिलिस्तीनी बच्चों से पूछिएगा कभी 
शैतान कैसा दीखता है ?
वे कहते हैं - शैतान दीवार के उस पार से आया है !
अफ्रीका से एशिया तक बच्चों ने शैतान को देखा है
भूख है उसका नाम !
शैतान परिधान बदल -बदल कर आता है
वह कभी बूट पहनकर हाथ में बंदूक लिए
कदमताल करते हुए प्रवेश करता है
तो कभी आता है किसी धार्मिक ठेकेदार के रूप में
वह कल्याण के नाम पर आता है
और विनाश कर जाता है
हत्या करना शैतान के बांये हाथ का खेल है
बच्चों को गुमराह करने के लिए किताबों,
कहानियों और इतिहास में बदलाव चाहता है शैतान
शैतान खुद को
ईश्वर का वरदान कहता है !
खाड़ी से लेकर वियतनाम तक के बच्चे बताते है शैतान का नाम अमेरिका है
फिलिस्तीनी बच्चों ने कहा -उसका नाम इज़राइल-अमरीका है !
बच्चों ने बताया है कि शैतान हर वक्त अकेला नहीं आता उनके देश में
अपने दोस्तों को भी लाता है हमला करते समय
उस वक्त वह प्यासा और भूखा होता है
मांस खाता है और इंसानी लहू पीता है शैतान
शैतान अंग्रेजी बोलता है !
शैतान तेल और खनिज माफिया बन कर भी आता है अक्सर बच्चों के देश में 
भारत के बच्चों ने शैतान का नाम नहीं बताया
कुछ भात-भात चीखते हुए मारे गये हैं
किसानों ने शैतान का नाम नहीं बताया
उन्होंने ज़हर पी लिया कर्ज़ा लेकर
कुछ ने फांसी लगा ली !

Tuesday, October 31, 2017

कविता के पक्ष होना मतलब जीवन के पक्ष में होना है

कविता करना या लिखना कोई पेशा नहीं है 
कविता करना 
मतलब जग और जीवन से परिचित होना है मेरे लिए 
वैसे भी जीवन में कविता के प्रवेश के बाद हमने ठीक से जीना सीखा है
मर के भी जीवत रहने की कला केवल कविता में है
यह जानने के बाद ही जीवन का होना सार्थक लगता है
कविता जीवन है
मनुष्य की तमाम कमज़ोरियों से परिचित किसने कराया हमें
जबाव है कविता
इसलिए कविता के पक्ष में रहना ही
अपने पक्ष में रहना है
हमारी तमाम संवेदनाएं जब कमज़ोर पड़ने लगें
और कभी जब यह अहसास होने लगे कि हम मर रहे हैं
पर हमारी सांसों का चलना जारी है
उस वक्त सबसे कमज़ोर हो जाते हैं हम
तब कोई सुंदर कविता हाथ थाम कर यदि कह दें हमसे कि यही जीवन है
एक नई उंमग जग सकती है हमारे भीतर
जीने की प्रबल चाह उभर आती है
ऐसे में निराश मन में नई ऊर्जा का सृजन होता है
पतझड़ में वसंत आता है
इसे ही कविता कहते हैं शायद
पर मेरा यकीन है
यही कविता है
चिकित्सा विज्ञान हमारी तमाम शारीरिक बिमारियों का उपचार कर दें,
संभव है आज
किन्तु दिल में सुकून कोई मधुर कविता ही भर सकती है
दुनिया की तमाम महान क्रांतियों की कहानी पढ़ कर देखिये कभी
उनमें हर समय नई ऊर्जा की कवि की रचना ने भरी है
हर जन-क्रांति में कोई न कोई कवि शामिल हैं अपनी कविता के साथ
इसलिए कविता के पक्ष में होना
मनुष्य के पक्ष में होना है
जीवन के पक्ष में होना है
जनहित में मानवता के पक्ष में होना है !

Tuesday, October 17, 2017

पहले ईश्वर नामक प्राणी मरा

पहले मंगल पर पंहुचे
फिर चाँद पर
बड़े सा पुल राष्ट्र को समर्प्रित हुआ
मन की बात का प्रसारण जारी रहा
जमीन पर कुछ किसान मारे गये
एक बच्ची भूख से मर गयी बिलकते हुए
उन्होंने राष्ट्र के नाम सन्देश दिया
ताज महल हमारी संस्कृति नहीं
मैंने असफल प्रयास किया
एक प्रेम कविता रचने की
पहले ईश्वर नामक प्राणी मरा
फिर मेरी संवेदनाएं |

Tuesday, October 10, 2017

हमारी स्मृतियों के साथ खेल रहे हैं वे

हमारी स्मृतियों के साथ खेल रहे हैं वे
याद कीजिए हम क्या -क्या भूल गये हैं इस दौरान
वे सभी लोग
जो शहीद हो गये
निरंकुश सत्ता से हमारे हक़ की लड़ाई में 
वे बच्चे,
जिन्हें शासन की बंदूक ने यतीम बना दिया
आखिरी बार कब याद आये हमें उन लोगों के चेहरे
बंदूक की नोक पर जिनसे छीन ली गयी
उनकी जमीन और जंगल
इसी तरह हम
वे तमाम बातें भूल गये हैं
जिन्हें भूलना सबसे घातक है भविष्य के दिनों के लिए
उनका काम है
हमारी स्मृतियों से खेलना
वे, जो उस तरफ खड़े होकर
हंस रहे हैं हम पर
बखूबी जानते हैं
कैसे बदला जाता है इतिहास
वे केवल किताबों से ही नहीं
जमीन से भी गायब कर देते हैं आदमी को
हमारी ये भूलने की आदत
एक दिन हमको भूला देगी
और तब किसी इतिहास की किताब के किसी कोने में भी
हम खोज नहीं पायेंगे खुद को
तब सभी किताबें जल चुकी होगी नफ़रत की आग में !

Monday, August 28, 2017

वक्त हम पर हँस रहा है

हादसों के इस दौर में
जब हमें गंभीर होने की जरूरत है
हम लगातर हँस रहे हैं !
हम किस पर हँस रहे हैं
क्यों हंस रहे हैं
किसी को नहीं पता
दरअसल हम खुद पर हँस रहे हैं
ऐसा लग सकता है आपको
किन्तु सच यह है कि
वक्त हम पर हँस रहा है
घटनाएं लगातर अपनी रफ़्तार से घटती जा रही हैं
रोज मारे जा रहे हैं मजबूर लोग
कोई नहीं है उन्हें बचाने के लिए
हमारे विवेक पर सत्ता हंस रही है
बरबादी और मौत के इस युद्ध काल में
हमारी आवाज़ कैद हो चुकी है
हम चीखते भी हैं तो
कोई सुन नहीं पाता !
अब तोड़ने होंगे ध्वनिरोधी शीश महल को
इस हंसी को अब थमना होगा
वरना हंसी की गूंज और तीव्र हो जाएगी

Thursday, August 10, 2017

इस नये इतिहास में हमारा स्थान कहाँ होगा

हक़ीकत की जमीन से कट कर
हमने आभासी दुनिया में बसेरा बना लिया है
हवा में दुर्गंध फैलता जा रहा है
हमने सांसों का सौदा कर लिया है
जमीन धस रही है 
और हम आसमान में उड़ना चाहते हैं
पर वो आसमान कहाँ है
जहाँ पंख फैला कर कोई परिंदा भी अब आज़ादी से उड़ सके !
हम अपनी भाषा से दूर हो गये हैं
हमने 'एप्प' नामक मास्टर से नई भाषा सीख ली है
यह भाषा जो हमारी पहचान को मिटाने में सक्षम है
आजकल हम उसी में बात करते हैं
देश की सत्ता आज़ादी का पर्व मनाने को बेचैन है

ऐसे समय में नागरिक खोज रहा है
अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार
हम बाहर की दुनिया से इस कदर कट गये हैं कि
न धूप की खबर है न ही पता है कि चांदनी कब फैली थी आखिरी बार
दूरभाष यंत्र 'फोन' से आदेश पर नमक तक घर पहुँच जाता है
हम पानी का स्वाद भूलने लगे हैं
कहने सुनने के तमाम आधुनिक उपकरणों के इस युग में
हम भूल गये हैं कि
हम कहना क्या चाहते हैं
हम संविधान के पन्ने पलट रहे हैं
गैजस्ट्स को देशी भाषा में क्या कहते हैं
मुझे नहीं पता
आपको पता हो शायद
झारखण्ड की सुदूर पहाड़ी पर बसे आदिवासियों को
नहीं मिल रहा है सरकारी राशन
हमें न इसकी खबर है न ही परवाह
हम पोस्ट करते जा रहे हैं अपनी पसंद की बातें
रंग-बिरंगी पटल पर जिन्हें खूब सराहा जा रहा है
हम 'लाइक' और टिप्पणियों (कमेंट्स ) की गिनती कर रहे हैं
एक तरफ़ा मन की बात के इस दौर में
दूसरों की आवाज़ हमारे कानों तक नहीं पहुँच पाती
हमारा जीवन-मृत्यु एक नम्बर पर निर्भर हो गया है
उसे ही जीवन का आधार कहा गया है !
घाटी -घाटी का इतिहास बदल रहा है
नये इतिहास गढ़े जा रहे हैं
इस नये इतिहास में हमारा स्थान कहाँ होगा
किसी को पता है क्या ?

Saturday, August 5, 2017

हमारी इस कमज़ोरी को क़ातिल खूब समझता है

ऐसा नहीं है कि
क़त्ल से पहले क़ातिल ने चेताया नहीं था उन्हें
यकीन न हों तो पढ़ लीजिये फिर से
रोहित वेमुला की आखिरी चिठ्ठी
और यदि याद हो 
अख़लाक़,
पहलू खान
और जुनैद का चेहरा पढ़िए
आपको पता चल जायेगा कि
क़ातिल ने क़त्ल से पहले खूब डराया था उन्हें
जैसे कभी मार दिए गये थे सुकरात
गाँधी तो मांसाहारी नहीं थे
फिर भी उनकी हत्या हुई थी खुली सड़क पे
और गाँधी वैष्णव थे !
क़ातिल वजह नहीं खोजता क़त्ल से पहले
हत्या से पहले वह आँखों में झाँक कर नहीं देखता
वह सिर्फ मारता है
काटता है
यही उसका पेशा है
वह ईमानदार है अपने पेशे के प्रति
और हम ....
न तो ईमानदार हैं अपने उसूलों के प्रति
न ही हम वफ़ादार हैं अपने वादों के प्रति
हम हर क्षण बदलते रहते हैं
अपनी जरूरतों के अनुसार
हमारी जरूरतें क्षण -क्षण बदलती है
हमारी इस कमज़ोरी को
क़ातिल खूब समझता है
और मन ही मन मुस्कुराता !

Friday, August 4, 2017

एक चिड़िया आकाश पर

अत्याचार,
शोषण -दमन
और तानाशाह के खिलाफ़
हम कविता लिख रहे हैं
नदी किनारे आखिरी वृक्ष मौन खड़ा है
एक चिड़िया आकाश पर फैले
काले धुंए से लड़ रही है !

Thursday, August 3, 2017

तुम मेरा महाकाव्य हो

मैं एक हारा हुआ व्यक्ति हूँ 
इसलिए तुम्हें खोने से डरता हूँ 
तुमने जब 
मुझे 'कवि' कह कर संबोधित किया 
मैंने खुद को तुम्हारा कवि कहा 
तुम्हें छूना चाहता हूँ
पर,
तुम्हारी नाजुकता से डरता हूँ
तुम मेरा महाकाव्य हो |


रचनाकाल : 4 अगस्त 2016 (posted on facebook )

हमसे हुआ नहीं ऐसा

वे चाहते थे कि
मैं भी उनकी भाषा में बोलूं
न बोल सकूं तो कम से कम उनकी भद्दी भाषा का समर्थन करूँ
हमसे हुआ नहीं ऐसा
हम न उनकी भाषा में बोल सकें 
न ही उनका समर्थन कर सकें
उन्हें आग लग गई
उनके पास भी गौ रक्षकों की एक पोषित भीड़ है
जो कभी भी
कहीं भी किसी भी विरोधी की हत्या कर सकती है
पीट कर न सही
अपनी भद्दी भाषा में वे किसी की हत्या करने में सक्षम हैं
मैंने अपना दरवाज़ा बंद कर दिया उनके लिए
उनके डर से नहीं
अपनी भाषा को बचाने के लिए
हम नहीं गा सकते जयगान
उन्होंने मुझे कुंठित कहा
गद्दार भी
जबकि हमने उनका नमक कभी नहीं खाया
सत्ता के कई रूप हैं
पहचानने का विवेक होना चाहिए |

Wednesday, August 2, 2017

कविता मेरी मिट्टी में छिपी हुई है

कविता कहाँ है उन्हें नहीं पता 
उन्होंने नहीं देखा खेत में किसान को
नहीं देखा उन्होंने पसीने से भीगे हुए मजदूर के बदन को
कुम्हार के चाक पर गढ़ते नये सृजन के बारे में नहीं पता उन्हें
तभी पूछा गया यह सवाल 
माँ की गोद में खिलखिलाते शिशु की हंसी को महसूस नहीं किया होगा शायद
बागों में जो फूल खिले हैं
उसमें भी नहीं मिली उन्हें कविता
पहाड़ से निकलती नदी की कल -कल में कविता को खोज नहीं पाए हैं वे
आकाश पर उड़ते पंछियों से पूछा नहीं उन्होंने आज़ादी का मतलब
नफ़रत के सौदागर कभी समझ नहीं पाए प्रेम का स्वाद
और पूछते हैं सवाल
कविता कहाँ है ?
कविता मेरी मिट्टी में छिपी हुई है
बारिश के बाद सौंधी खुशबू के साथ बाहर निकलती है
और मुझे महका देती है |

बेअसर हो गयी तमाम कविताओं को

बेअसर हो गयी तमाम कविताओं को
मैंने जला देना बेहतर समझा
शब्दों का ढेर बेजान सा कागज की छाती पर पड़ा है
लोग बेपरवाह हैं
उन्हें कोई मतलब नहीं कि पड़ोस के घर में आग लगी है 
सड़क पर कोई रक्त से भीगा पड़ा है
किसी गौ रक्षक ने भीड़ के सामने उसकी हत्या कर दी है
भीड़ ने उस हत्या की फिल्म बनाई है
बस उस भीड़ ने उसे बचाने के लिए कुछ नहीं किया
उसी सड़क के किनारे बड़ा सा होर्डिंग लगा है जिस पर देश के प्रधान
बहुत ही स्वच्छ और उज्ज्वल परिधान में खड़े हैं
उस होर्डिंग पर सबसे बड़ी तस्वीर भी उनकी है
और उनके पीछे एक ग्रामीण स्त्री हल्की मुस्कान लिए अपने चेहरे भर के साथ मौजूद हैं
जहाँ एक रसोई गैस का सिलेंडर है ...और लिखा है ... महिलाओं को मिला सम्मान !
'प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना'
सिलेंडर से सम्मान इस बात को समझने की जरूरत है
कि सम्मान के लिए कई उपाय है सत्ता के पास
और सम्मान भी सब्सिडी के साथ !
और सब्सिडी सदा के लिए नहीं होती
माताएं खूब जानती हैं इस बात को
पर कहती नहीं
क्योंकि उनके बोलने से ही हलचल पैदा हो सकती है
इसलिए यहाँ महिलाओं को घुंघट में रहने की सलाह दी जाती है अक्सर
और यह भी बता दिया जाता है कि
'खूब लड़ी मर्दानी वो झाँसी वाली रानी थी '*
(सुभद्राकुमारी चौहान की कविता )
और भी बहुत कुछ
माने कि सम्मान जो वे अपनी इच्छा से आपको दें
उसी में संतोष रहो , इसी में मर्यादा है
यही उनका मानना है
जरूरत पड़ने पर रानी पद्मावती की कहानी भी सुनायेंगे
वे किसानों को अन्नदाता कह कर संबोधित करेंगे
और अपने हक़ के लिए सड़क पर उतरे तो गोली चलवा देंगे
वे विश्वविद्यालय में पुस्तकालय नहीं तोप लगाने की पैरवी करेंगे
ऐसा बहुत कबाड़ लिख चुका हूँ
और उन्हें कविता मानता आया हूँ
किन्तु अब लगता है केवल शब्दों का ढेर जमा किया है हमने
और अब जब चारों ओर स्वच्छता का नारा है
बापू का चश्मा भी इस अभियान का सिम्बल बना दिया गया है
और कहीं कोई असर नहीं मेरे लिखने का
ऐसे में उन्हें जला देना ही उचित होगा शायद !

Wednesday, July 19, 2017

मेरा देश रोना चाहता है बहुत जोर से चीख़ कर

मान लीजिये कि कभी आप
चीख़ कर रोना चाहते हैं
किन्तु रो नहीं सकते !
कैसा लगता है तब ?
तकलीफ़ होती है न ?
मेरा देश रोना चाहता है बहुत जोर से चीख़ कर
जैसा कि मैं चाहता हूँ
किन्तु रो नहीं पाता हूँ
बहुत घुटता रहता हूँ
जैसे किसी तानाशाही ताकत ने
कैद कर दिया मुझे
किसी कैद खाने में
जहाँ से मेरी आवाज़ किसी को सुनाई नहीं देती
मैं करना चाहता हूँ
दर्द और प्रेम का इज़हार एक साथ
पर मेरी आवाज़ और तुम्हारे बीच
बहुत मजबूत एक दीवार है
मेरी आवाज़ भेद नहीं पाती उसे
आओ हम मिलकर
चीखें दीवार की दोनों ओर .....

Sunday, July 2, 2017

बरसात में नदी

बरसात में कभी देखिये
नदी को नहाते हुए
उसकी ख़ुशी और उमंग को
महसूस कीजिये कभी
विस्तार लेती नदी 
जब गाती है
सागर से मिलन का गीत
दोनों पाटों को बात करते सुनिए
कि हर नदी की किस्मत में
मिलन नहीं है
फिर भी बारिश में नहाती कोई नदी
जब खुश होती है
पहाड़ खोल देता है अपनी बाहें
झूमता है जंगल
खेत खोल देता द्वार
और कहता -
ओ , नदी थोड़ा संभल कर
मुझे सर्दी लग जाएगी !
खेत, अपने उदास किसान का
चेहरा सोच कर बुबुदाता है |
कहीं दूर उस नदी किनारे पर बसा गाँव से निकल कर
कुछ बच्चों ने कागज की कश्ती बनाई है
वे उसे नदी में बहा देना चाहते हैं
उस कश्ती में बच्चों ने
अपनी ख़ुशी भर दी है
और बताया है
कि, पिछले साल उनके गाँव के किसान, चिंटू के पापा ने
सूखे के कारण अपनी जान दे दी थी
पानी के आभाव में मरी थी कई बकरियां
बच्चों ने कश्ती में सूखे की पीड़ा लिखी है |
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Tuesday, June 27, 2017

हत्या के लिए कोई नया बहाना हर बार

दरअसल गाँधी की हत्या के साथ ही
उन्होंने बता दिया था
जब -जब उनका मन होगा
और जो कोई उन्हें पसंद नहीं होगा
उसी तरह सड़क पर उनकी निर्मम् हत्या कर दी जाएगी 
वे तन पर चोट देकर हत्या तो करेंगे ही
किन्तु उससे पहले वे कई बार चोट करेंगे हमारे मन पर
हमारी सोच पर
हमारी सोच से ही नफ़रत है उन्हें
जबकि ये हत्यारे ही नफ़रत के सबसे बड़े व्यापारी हैं
और उन्हें यह भली-भांति पता है कि
वे लाख कोशिशों के बाद भी मार नहीं सकते हैं हमारी सोच को
इसलिए अंत में वे हमें तन से ही मिटा देना चाहते हैं
भला भोजन के आधार पर किसी की हत्या कर दी जाएगी
ऐसा किसने सोचा था कभी
पूरी धरती पर ऐसा कहाँ -कहाँ होता है ?
यहाँ के अलावा कहीं नहीं
भोजन ही जीवन का आधार है
और अब उसी भोजन के आधार पर वे छीन रहे हैं जीवन
किन्तु यह सत्य नहीं है
हत्या के लिए इस भोजन को बस बहाना बनाया गया
दरअसल उनकी चिंता हमारी सोच से है
और किसी पशु की रक्षा के बहाने जो लोग
मार रहे हैं इंसानों को
उनके लिए क्या कहा जा सकता है भला !
पशु बोल नहीं पाते इन्सान की भाषा
पर प्रेम और नफ़रत के फ़र्क को महसूस कर सकते हैं
किन्तु उन्हें नहीं पता कि उनके नाम पर भी हत्या हो सकती है
गाँधी मांस नहीं खाते थे
शाकाहारी वैष्णव थे
उनकी हत्या हुई थी न
तो आज भोजन के आधार पर जो इंसानों को मार रहे हैं
दरअसल हत्या ही उनका पेशा है
खोज लाते हैं समय -समय पर
हत्या के लिए कोई नया बहाना हर बार

Tuesday, June 13, 2017

गवाही कौन दें

हत्या
हर बार
तलवार या बंदूक से नहीं होती
हथियारों से जिस्म का खून होता है
भावनाओं का क़त्ल फ़रेब से किया जाता है 
और पशु फ़रेबी नहीं होता
जानता है यह हक़ीकत इन्सान
फिर भी नहीं शर्माता
शर्म के लिए भी विवेक चाहिए |
धरती ,
बोलती नहीं दर्द की कथा
आकाश रहता है ख़ामोश
जिस पेड़ को हमने छुआ था
याद है उसे स्पर्श का अहसास
पर, अब
हम नहीं हैं एक साथ
गवाही कौन दें
कि बेवफ़ा कौन है ?

Monday, June 12, 2017

तुम्हारे पक्ष में ........


हाँ यही गुनाह है
कि मैं खड़ा हूँ तुम्हारे पक्ष में
यह गुनाह राजद्रोह से कम तो नही 
यह उचित नही
कि कोई खड़ा हो
उन हाथों के साथ जिनकी पकड़ में
कुदाल ,संभल , हथौड़ी ,छेनी हो
खुली आँखों से गिन सकते जिनकी हड्डियां हम
जो तर है पसीने से
पर नही तैयार झुकने को
वे जो करते हैं
क्रांति और विद्रोह की बात
उनके पक्ष में खड़ा होना
सबसे बड़ा जुर्म है ....
और मैंने पूरी चेतना में
किया है यह जुर्म बार -बार ..

रचनाकाल :12 जून , 2013 

Thursday, June 8, 2017

राजा निपुण शिकारी है

राजा संविधान कभी नहीं पढ़ता
वैसे राजा संविधान लिखता भी नहीं
इसलिए वह संविधान की परवाह नहीं करता
राजा का आदेश ही
राजा का संविधान है
जिसे प्रजा पर हर हाल में थोप दिया जाता है
क्यों कि राजा का मानना है कि
उसकी भलाई में ही
प्रजा की भलाई है
राजा आखिर सिर्फ राजा नहीं होता
इतिहास कहता है राजा धरती पर देवता का प्रतिनिधि है
और ये इतिहास किसने कब लिखा
किसी को नहीं पता
किसी देवता ने किसी मनु को राजा बना दिया था
ऐसी अफ़वाह खूब फैलायी गयी यहाँ
वर्षों पहले क्टेवियन ने जूलियस सीज़र के सभी संतानों को मार दिया था
राजाओं को प्रिय है आक्रमण और हत्याओं की कहानी
राजाओं का प्रिय शौक है शिकार खेलना
प्राचीन राजा जंगल में शिकार खेलते थे
आधुनिक राजा के साम्राज्य में जंगल नहीं बचे हैं
इसलिए राजा अब शहरों, नगरों, कस्बों और गांवों में घुस कर शिकार खेलता है
वह शहर,
नगर,
गाँव को जंगल बना देना चाहता है |
राजा निपुण शिकारी है
और प्रजा आधुनिक जंगल के निवासी !

Monday, June 5, 2017

प्रेम क्रांति का पहला पड़ाव है

इस दौर में
कवियों से अधिक हमले
प्रेमियों पर हुए हैं
तभी तो ,
कवियों से अधिक 
प्रेमी शहीद हुए हैं
सत्ता डरती है
प्रेमियों से
लिखी गयी कविता अब मोड़ कर रख दी जाती है
कवि पुरस्कार लेकर खुश हो जाता है
तारीफ़ कवि की सबसे बड़ी कमजोरी है
जबकि प्रेम ऐसा कुछ नहीं चाहता
प्रेमी विद्रोह करता है
सबसे पहले
वह अपनों का विरोध करता है
जो प्रेम के विरोध में होते हैं
इसी तरह परिवार से समाज तक
और समाज से
सत्ता तक पहुँचता है उसका विरोध
सत्ता, जो एंटी रोमियो दल बनाती है
इसलिए ,
प्रेम क्रांति का पहला पड़ाव है
और मैं इस क्रांति के पहले पड़ाव पर हूँ !

Sunday, June 4, 2017

न ही मैं, खुद को समझा पाया हूँ ..

और हो सकता है
कि,
किसी सुबह
 तुमसे मुलाकात ही
न हों !
मैंने दुनिया को
सोचना छोड़ दिया है
जबकि,
मैं जानता हूँ
कि यह, वही दुनिया है
जहाँ से निकल कर
मैं लेना चाहता हूँ साँस !
न तुमने समझा मुझे
न ही
मैं, खुद को समझा पाया हूँ ....
तुम्हारे गुड नाईट
कहने के बाद के समय को
मैं सोचता हूँ ...
तुम समझ नहीं सकी हो मुझे
मैं,
अपनी तमाम रातें
तुम्हारे नाम करता हूँ |

Tuesday, May 30, 2017

मैं बेवफ़ा हूँ और तुम मासूम

पता नहीं क्यों
तुम्हारे तय रास्तों पर
मंजिल तक पहुँच न सका
मेरा प्रेम !
अब मैं
बेवफ़ा हूँ
और तुम मासूम |

रेत नहीं बहते पानी हैं

हो सकता है 
अब हम आपकी 
आँख की 
किरकिरी बन गये हैं 
जबकि हम रेत नहीं 
बहते पानी हैं !

किसान बोलता नहीं शोषण की कहानी

किसान बोलता नहीं
शोषण की कहानी
कर लेता है ख़ुदकुशी
आदिवासी बोलते हैं 
लड़ते हैं अपनी जमीन -जंगल के लिए
पुलिस मार देती है गोली
छात्र उठाये आवाज़ अपने हक़ के लिए
तो,भर दिए जाते हैं जेल |
लोकतंत्र की किताब में
ये नये अध्याय हैं !
इन नये लिखे अध्यायों को बदलने के लिए
लड़ना तो होगा |

हिंसा नहीं , बल्कि प्रेम का विस्तार हो

यहाँ हर अपराध को घृणित और निंदनीय
कह कर हम सब
अपने सामाजिक कर्तव्य से छुटकारा पा लेते हैं
न तो अपराध के कारणों की तलाश करते हैं
न ही भविष्य में उसके रोकथाम पर सोचने का वक्त निकाल पाते हैं 
दरअसल हमने कभी अपने किसी भी दायित्व को ठीक से जाना -समझा नहीं
मैं यहाँ आपको नैतिकता या सामाजिक दायित्व पर
कोई ज्ञान नहीं दे रहा हूँ
क्यों कि उसके लिए जो ज्ञान और समझ चाहिए
वह मेरे पास नहीं है अभी
मैं चाहता हूँ बस थम जाए पतन इंसानी समाज का
और मनुष्य सचमुच का मनुष्य बन जाये
विकास के लिए शोषण की अनिवार्यता समाप्त हो जाये
हिंसा नहीं , बल्कि प्रेम का विस्तार हो |
पर सवाल है कि
ये सब कैसे हों
कौन करे पहल ?
इन सवालों का जवाब कहीं और से नहीं
खुद से लेना होगा सबको |

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...