Friday, August 22, 2014

भाई मेरे कपड़े नही, मेरा चेहरा देखो।

उसके ठेले पर हर सामान है
मतलब सुई -धागा से लेकर चूड़ी , बिंदी , नेल पालिस , आलता
कपड़े धोने वाला ब्रश
और उसके ग्राहक हैं -वही लोग , जो खुश हो जाते हैं
किसी मेले की चमकती रौशनी से , लाउड स्पीकर के बजने से
ये सभी लोग जो आज भी
दिनभर की जी तोड़ मेहनत के बाद
अपने शहरी डेरे पर पका कर
खाते हैं दाल -भात और चोखा
कभी -कभी खाते हैं
माड़ -भात नून से

इनदिनों जब कभी मैं पहनता हूँ इस्त्री किया कपड़ा
शर्मा जाता हूँ उनके सामने आने से
लगता है कहीं दूर चला आया हूँ अपनी माटी से

आज मैं भी था उनके बीच बहुत दिनों बाद
ठेले वाले से कहा उन्होंने - साहेब को पहले दे दो भाई।
मेरे पैर में जूते थे , हाथ में लैपटाप का बैग
मेरे कपड़े महंगे थे ,
मुझे शर्म आई , सोचा कह दूँ - भाई मेरे कपड़े नही
मेरा चेहरा देखो।

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...