एक नदी
जो निरंतर बहती है
हम सबके भीतर कहीं
वह नदी जिसने
देखा नही कभी कोई सूखा
वह नही जिसे प्यास नही लगी कभी
मैं मिला हूँ उस नदी से आज
अपने भीतर
यदि आप नही मिले
अपने भीतर बहते उस नदी से
देखा नही यदि उसकी धाराओं को
तब छोड़ दो उसे अकेला
उसकी लहरों के साथ उन्मुक्त
ताकी वह बहती रहे निरंतर
कभी मंद न पड़े लहरें उसकी
किसी हस्तक्षेप से
उसकी धाराओं में जीवन है
छोड़ दो उसे अकेला ,ताकि
हमारा अहंकार उसे सूखा न दें
निगल न लें उसे
ईर्ष्या की बाढ़
ऐसा होने पर
बह जायेगा सब कुछ
उस पानी में सड़ जायेगी इंसानियत
अशुद्ध हो जायेगा नदी का जल ....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति | बधाई |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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बहुत -बहुत शुक्रिया आपका तुषार जी . सादर
Deletevakai har insaan ke bhitar 'zameer', 'insaaniyat' ya kisi aur naam se bahne wali nadi hoti hi hai, par hum hi use apne swarth, irshya ya ahankaar jaise karno se kahin gum kar dete hain, saraswati ki tarah!!!
ReplyDeleteधन्यवाद सुनीता जी . सादर
Deleteसुन्दर बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteटंकण त्रुटी- इर्षा को ईर्ष्या कर लें.
सादर
अनु
बहुत शुक्रिया आपका अनु जी . सादर
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ReplyDeleteउसकी धाराओं में जीवन है
ReplyDeleteछोड़ दो उसे अकेला ,ताकि
हमारा अहंकार उसे सूखा न दें
निगल न लें उसे
ईर्ष्या की बाढ़
... नदी को लेकर ऐसी सुंदर बात कविता में बहुत कम देखने को मिलती है भाई। बधाई।
nityanand ji ,
ReplyDeleteek baar phone kare. aapka number kho gaya hia ..
vijay kumar
hyderabad
09849746500
baithte hai ..
abhi es kavita mai aur kam karna chahiyae tha .kavita likhna sue kai nok par chlaenae kai barabar hai . kisan kitrah kavita kai liyae khpna padta hai .
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