हे गुरुवर
मैं, एकलव्य की जाति का हूँ
सूद्पुत्र हूँ कर्ण की तरह
किन्तु ,मैं नही दे सकता
अपना अंगूठा
न ही बना सकता हूँ
आपकी प्रतिमा
पर , कमी नही है मुझमें
प्रतिभा की ..
फिर भी ,
मैं उन लाखों बच्चों में हूँ
जो आज भी वंचित हैं
शिक्षा के अधिकार से
पूर्ण आदर और विनम्रता के साथ
मेरा यह निवेदन है आपसे
न कीजिए भेदभाव मेरे साथ
मेरे जन्म और जाति के आधार पर
क्यों कि अर्जुन की परीक्षा के लिए
एकलव्य और कर्ण का बनना जरूरी है
नही तो फिर से
शिक्षा की रणभूमि पर
निहत्था मारा जायेगा कर्ण
और गुमनामी में खो जायेगा
एकलव्य ....
फिर भी ,
मैं उन लाखों बच्चों में हूँ
जो आज भी वंचित हैं
शिक्षा के अधिकार से
पूर्ण आदर और विनम्रता के साथ
मेरा यह निवेदन है आपसे
न कीजिए भेदभाव मेरे साथ
मेरे जन्म और जाति के आधार पर
क्यों कि अर्जुन की परीक्षा के लिए
एकलव्य और कर्ण का बनना जरूरी है
नही तो फिर से
शिक्षा की रणभूमि पर
निहत्था मारा जायेगा कर्ण
और गुमनामी में खो जायेगा
एकलव्य ....
संभवतः शिक्षा के अधिकार से वंचित रहने में गुरुओं को दोष देना न्यायोचित नहीं होगा और एक गुरु के कृत्य को सभी में देखना भी ………रचना सुन्दर किन्तु भावना से असहमत………।
ReplyDeleteकौशल जी , आभार आपका | विनम्र निवेदन है कि कविता को एक बार फिर से पढ़िए और कर्ण और एकलव्य जैसे पीड़ित छात्रों के पक्ष में सोचकर देखिये ......बिलकुल सभी शिक्षक एक जैसे नही होते ..न ही इस कविता में ऐसा कुछ कहा गया है | सादर
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ReplyDeleteआभार आपका यशवंत यश जी |
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सामयिक रचना
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!