रिक्शे पर खुले आकाश के नीचे
तुम्हारा अंतिम चुम्बन
आज भी अंकित है मेरे गाल पर
मैं प्रेम की परिभाषा नहीं जानता
तुम्हारी खुशबू आज भी बाकी है
मेरी सांसों में
फूल सूख गया है
पर मैंने सम्भाल के रखा है
पंखुड़ियों को
गुलाल के लिए
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रिया , सर
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