Monday, September 21, 2009

जिसे कभी देखा था

मटमैले रूप में
सड़क के किनारे
जिसे कभी देखा था
सर्द मौसम में
जिसका तन आधा ढका था


उसका  पेट
पीठ सठा था
वह आया था
इस शहर में
काम की तलाश में
उस पर अपने
परिवार का बोझ था
उसे कोई काम नही देता था
उन्हें शक था ,
वो एक चोर है


मंदिरों में उसका प्रवेश
मना था क्योंकि
वह निम्न वर्ग का था


उसके चहरे पर
बेवसी का चित्रण था
कल की सर्द रात में
फूट पाथ पर सोते हुए
एक अमीर जादे ने
 जिसे कुचला
 वही गरीब था //

7 comments:

  1. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 27-10 - 2011 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में आज ...

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  2. कल की सर्द रात में

    फूट पाथ पर सोते हुए

    एक अमीर जादे ने जिसे कुचला

    वह वोही गरीब था

    बहुत मार्मिक लिखा है सर! लेकिन हकीकत मे ऐसा ही होता भी है।

    सादर

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  3. मैं आपके ब्लाग पे नइ पुरानी हलचल के माध्यम से पहली बार आया हूं बहुत मार्मिक ये रचना दिल को छूने वाली है
    कभी मेरे ब्लाग पे भी पधारें! आभार...

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  4. बहुत आभार आप सबका

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  5. bhavpurn chitran, saath mein thoda sa vyang bhi pratit huwa....

    umda....

    www.poeticprakash.com

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  6. bahut hi marmik kavita hai.....umda prastuti

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