बीते दिनों में
कोई कविता नहीं बनी
लगता है दर्द में कुछ कमी रह गई
पर बेचैनी कम कहाँ हुई है
क्यों भर आती है आँखें अब भी
तुम्हारे दर्द में
कोई कविता नहीं बनी
लगता है दर्द में कुछ कमी रह गई
पर बेचैनी कम कहाँ हुई है
क्यों भर आती है आँखें अब भी
तुम्हारे दर्द में
मजदूर की पीड़ा कम कहाँ हुई है
किसान ने फांसी लगाना बंद कहाँ किया
भूखमरी में कमी कहाँ हुई है
निज़ाम ने छलना कहाँ बंद किया है ?
किसान ने फांसी लगाना बंद कहाँ किया
भूखमरी में कमी कहाँ हुई है
निज़ाम ने छलना कहाँ बंद किया है ?
हमको जाना है
चले जायेंगे
पर इस पीड़ा का क्या करें ?
चले जायेंगे
पर इस पीड़ा का क्या करें ?
आओ मिलकर गीत गायें पूजा आरती करें और भूल जायें दर्द और पीड़ा। सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमजलूमों की पीड़ा को महसूस करती भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमजलूमों की पीड़ा
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