कवि रात की तन्हाई में
अक्सर रोता है
खुद को तसल्ली देता है
अक्सर रोता है
खुद को तसल्ली देता है
कवि ने आईने के सामने खड़ा होकर कहा
हाँ, मैं कायर हूँ
तुम्हारी नज़रों में
पर एक बार पूछ लेना - सत्ता से
क्यों डरती है -मेरी कलम से
मेरे सवाल से
तुम्हारी तरह ?
हाँ, मैं कायर हूँ
तुम्हारी नज़रों में
पर एक बार पूछ लेना - सत्ता से
क्यों डरती है -मेरी कलम से
मेरे सवाल से
तुम्हारी तरह ?
जाओ, खुली छूट है अभी
फैलाओ झूठ , नफ़रत मेरे खिलाफ
करो बदनाम मुझे
बेवफ़ा और देशद्रोही कहो मुझे
फैलाओ झूठ , नफ़रत मेरे खिलाफ
करो बदनाम मुझे
बेवफ़ा और देशद्रोही कहो मुझे
मेरे सवाल तब भी तुम्हें करेंगे बेचैन
तुम्हें आईने से डर लगेगा
तुम्हें आईने से डर लगेगा
नकली मुस्कुराने की अदा से
कुछ लोग दीवाने बन जायेंगे
कुछ लोग दीवाने बन जायेंगे
फिर भी तुम्हें हमेशा मेरे सवालों से
भय लगेगा
भय लगेगा
मेरा इरादा भय फैलाना नहीं है
और सवाल डर के लिए नहीं
सच के लिए होते हैं
और सवाल डर के लिए नहीं
सच के लिए होते हैं
तुम सच छुपा रहे हो
इसलिए काँप रहे हो
इसलिए काँप रहे हो
बहुत खूब
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