अब तक बची हुई थी कविताएं मेरी
तुम्हारे जिक्र से
तुम्हारे सवालों ने उस घेरे को तोड़ दिया है शायद
आगे क्या करूं
किस तरह से बचूं
पता नहीं
या कविता छोड़ दूं
या उन्हें कैद कर दूँ
लॉक डाउन की तरह
आजीवन किसी अँधेरी कोठरी में !
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युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
सुन्दर रचना
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