खाली कैनवास पर
यह उदास चेहरा किसका है
वह एक आम भारतीय है
गरीबीरेखा के नीचे वाला.
उसके पास खड़ी है
सूखे झुर्रियों गालोंवाली
अस्सी बरस की उसकी माँ
और एक जवान बहन.
काम नही मिला उसे
किसी रोज़गार गारंटी में
नेता जी आये थे एकदिन
उस दीन के झोपडी में
एक रात बिताया था
उस दलित के कुटिया में
नेताजी के साथ उसकी
तस्वीर भी छपी थी
अगले दिन के अख़बारों में
नेताजी ने कहा था -
तुम्हारा वोट बहुमूल्य है
मुझे मत-दान करना
न समझ था बेचारा
जाकर मतदां केंद्र
दान कर आया
अब उसके पास सिर्फ
अख़बारों के टुकड़े , और
मंत्री जी का वादा शेष है .
Sunday, June 13, 2010
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युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
सच को बड़े करीने से उकेरती रचना ...बहुत सुन्दर !!!
ReplyDeleteबहुत आभार आपका
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