Friday, June 4, 2010

नही भूलता वह दृश्य

कल शाम बैठा था
मैं नदी के किनारे
मध्यम लहरों को देखता रहा
ख्याल बुनता रहा
लहर टूटते रहे
मेरे ख्याल भी टूटते रहे
लहरों की  तरह .

दूर किनारे के पार
डुबते रवि को देखता रहा
वह मुस्कुराता रहा
मुझे देखकर
और मैं उसे  देख कर .

मेघों के कुछ अंश
खेल रहे थे
शांत नीलाम्बर मैदान पर
साँझ के शांत मिजाज़ का
लुफ्त उठा रहे थे वे

नही भूलता वह दृश्य
मेरे मन में शमा गया है .

2 comments:

  1. bhavnaon ki athkheliyon mein doobte utarte yun,
    kahin beh na jana un lahron mein hee,
    uss ravi ki ore|

    - Nilay

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