Monday, June 28, 2010

बेवफा बादल

बेवफा बादल  

काले बादल
नभ पर छाये
नए उमंग
मन में जागे
किसान खेतों की और भागे
जंगल में भी मोर नाचे
वाह क्या बादल छाये /
पतझड़  तरु के
आस जागे
जिन्होंने वर्षा के वर मांगे
फिर जीने की चाह में
सूखा तिनका
उठ बैठा
बादल देख
वह खिल उठा
सुखे झरने नदियों ने
प्रिया मिलन सा श्रृंगार  किया
जल की रानी
तड़प उठी
उसमे नई उन्माद उठी /

ढोल नगाड़े
बज रहे
गावों में सब नाच रहे
श्रावण की आश में
मिठाइयाँ बाँट रहे
किन्तु -
मेघ बेवफा निकला
सबकी उम्मीद तोड़ कर निकला
जीवन की चाह जगाकर मन में
बादल भागा नेता की तरह ./

2 comments:

  1. च्छी लगी आपकी रचना बधाई

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  2. वर्षा ऋतु की आपको भी बधाई।

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