मैंने लिखे उन्हें ख़त
मिले उन्हें मेरे ख़त
किन्तु जबाव न आया मेरे किसी ख़त का
मेरे ख़त के जबाव में
कोई ख़त न भेज कर
उन्होंने मेरे खतों का जबाव दिया
खामोश रहकर .
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युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
Khamoshi Bahut kuchch kahti hai. Shabdon se kahin zyada. Aakhri do panktiyan bahut sundar hai.
ReplyDeletevery nice :-)
ReplyDeletethank u khurshid sir and nitin bhai.
ReplyDeletebahut khoob janab.. jubaan ka behtereen istemaal kar lete hain aap - Fakharu
ReplyDeleteखतो के जवाब का एक यह अंदाज़ भी
ReplyDeleteबहुत अच्छा
अच्छी रचना है।
ReplyDeleteमिश्रा जी , वर्मा जी मेरा धन्यवाद स्वीकारें
ReplyDeleteकभी खामोशी भी बहुत कुछ कह जाती है...
ReplyDeleteखूब लिखा है आपने। ग़ज़ल की विधा में कहें तो ऐसे भी कहा जा सकता है।
ReplyDelete" लिखा जो ख़त मेरे ख़त के जवाब में उसने
भुला दिया उसे रखकर किताब में उसने
नहीं- नहीं का भी मतलब है उसकी हाँ यारो
कि दे दी मात सभी को हिसाब में उसने। "
कुमार अनिल
bahut sunder Anil jee. Dhanyvaad
ReplyDeleteआपकी ये कवितायेँ अपने आप में काफी गूढ़ अर्थ समतें हुए हैं | आपकी इस प्रयास के लिए आपको ह्रदय से धन्यवाद् |
ReplyDelete- प्रिया