Thursday, December 23, 2010

एक काले गुलाम की याद ताज़ा करते हैं वे

जिंदा नही हैं वे
फिर भी जी रहे हैं
मशीनी मानव की तरह
और जाग रहे हैं रात भर
उल्लू की तरह
अमेरिकी दलाल बास की
इशारों पर सिर हिलाते हुए /
एक काले गुलाम की याद  ताज़ा करते हैं वे
अपमान सहकर  भी
खुश होने का नाटक करते हैं
क्या मैं इन्हें --
मन और चेतना से जीवित मान लूं ?
जानवरों को भी देखा है मैंने
विद्रोह करते --
अन्याय के विरुद्ध
क्या आज का मानव
सच में मजबूर है
एक कैद जानवर से ज्यादा ?

7 comments:

  1. VIVASTHA ME JEENE-MARNE KA BAKHUB CHITRAN /

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  2. Kya aaj ka manav sach mein majaboor hai??? Agyanata aishnaon ke vashibhoot ho manav bhatak raha hai Chand Chandi ke Chamakate sikkon ki talash mein jisane chheen li hai usase usaka sukoon aur usaki maanavataa. Sukoon aur Maanavataa se vihin manav kya manav rah gaya hai? Chetanashoonya ho gaya hai manav aur is avachetan avastha mein vah daas nahin to kya?? Vidroh to vah karata hai jo chaitanya hota hai, jisaki aatma use dhikkarati ho. Parantu aatmavismriti ke daur se gujarane wala manav aur usase nirmit samaj kya kabhi vidroh ya aandolan kar paayega?? Akhir isaki jad mein kya hai???? Jad ko janana padega?? Mool ko samajhana padega?? Mujhe lagata hai in sabake mool mein bhookh hai?? yah baat deegar hai bhookh ji jati kya hai?? Ab log poochhenge ki manav ki jati ke baare mein to suna tha parantu ye bhookh ki bhi jati hone lagi kya?? to suniye bhookh ki bhi jati hoti hai. Kisi ki bhookh do roti ki hoti hai, to kisi ki aakash kusum ki, to kisi ki dharati par swarg ki. Jinaki bhookh do roti ki hoti vah jawan hoti hai kathin upavaason ke beech palakar aur jinaki bhookh Akash kusum ki hoti hai, dharati par swarg ki hoti vah parwan chadhati hai Vaataanukulit sheeshamahalon mein aur do roti ke bhookh walon ki jindagi ko nigalane ka kuchakra rachati hai. Bhookh ke sataye logon ne agyanata ka chaadar odhakar Chaitanyashoonya ho gaye se lagate hain. Sach kya hai yah to vahi jaane jo agyani hone ka natak kar rahe hain, avachetan hone ka dhong kar rahe hain? Arbind Pandey

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  3. क्या आज का मानव सच में मजबूर है ???

    अज्ञानता व ऐश्नाओं के वशीभूत हो मानव
    भटक रहा है चंद चांदी के चमकते सिक्कों की तलाश में,
    छीन ली है जिसने उससे
    उसका सुकून और उसकी मानवता !
    सुकून और मानवता विहीन मानव
    क्या मानव रह गया है ?
    चेतनाशून्य और आत्मविस्मृत मानव !!
    अपनी इस अवचेतन अवस्था में वह
    दास नहीं तो क्या ??
    विद्रोह !
    विद्रोह तो वह करता है जो चैतन्य होता है,
    धिक्कारती हो जिसे उसकी आत्मा ?
    परन्तु
    आत्मविस्मृति के दौर से गुजरने वाला मानव
    और
    उससे निर्मित समाज
    क्या कभी विद्रोह या आन्दोलन कर पायेगा ??
    आखिर
    इसकी जड़ में क्या है ?
    जानना होगा जड़ को?
    समझना पड़ेगा मूल को?
    कहीं इन सबके मूल में भूख तो नहीं ?
    यह बात दीगर है कि
    भूख की जाति क्या है ?
    जाति !!
    सुना था मानव की जाति के बारे में,
    परन्तु ये भूख की भी जाति होने लगी क्या ??
    हाँ
    भूख की भी जाति होती है!
    जिनकी भूख दो रोटी की होती है
    वह जवान होती है कठिन उपवासों के बीच पलकर
    और
    देखती हैं आँखें फाड़ फाड़कर.
    परन्तु
    जिनकी भूख आकाश कुसुम की होती है,
    धरती पर स्वर्ग की होती है
    वह परवान चढ़ती है वातानुकूलित शीश महलों में,
    देखती हैं आँखे तरेर कर
    और रचती हैं कुचक्र
    दो रोटी के भूख वालों की जिंदगी को निगलने का.
    भूख के सताए लोगों ने
    ओढ़ ली है चादर अज्ञानता का, मजबूरी का
    और
    ओढ़कर चैतन्य शून्य हो गए से लगते हैं.
    सच क्या है यह तो वही जाने
    जो अज्ञानी होने का नाटक कर रहे हैं,
    अवचेतन होने का ढोंग कर रहे हैं ?
    Arbind Pandey

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  4. बहुत ही भावपूर्ण रचना ...बधाई

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  5. आप सभी का दिल से धन्यवाद

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  6. haan yehi hote jaa rahe hain hum...
    western education and culture copy karte karte...
    aur chinta ka vishai hai ki hume yehi theek lagta hai!!

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  7. क्या वर्तमान की सच्चाई लिखी है...

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