मैंने तुम्हें देखा नही नजरों से
सुनी है तुम्हारी आवाज़ पल भर
मेरे दिल की धड़कन क्यों बढ़ने लगी
पता है तुम्हें कुछ ?
मैंने देखा नही है
तुम्हारा चेहरा
पर बना लिया है एक चेहरा
मन की दीवार पर
कभी देखना आकर
क्या यह तुम ही हो ?
यदि ठीक न बनी हो सूरत
तो पोत देना कालिख मेरे चेहरे पर
अफ़सोस न होगा मुझे
बस भूल पर अपनी मुस्कुरा दूँगा
हंसी की भाषा तो तुम्हें आती होगी ...
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केस्च गूगल से साभार
सुनी है तुम्हारी आवाज़ पल भर
मेरे दिल की धड़कन क्यों बढ़ने लगी
पता है तुम्हें कुछ ?
मैंने देखा नही है
तुम्हारा चेहरा
पर बना लिया है एक चेहरा
मन की दीवार पर
कभी देखना आकर
क्या यह तुम ही हो ?
यदि ठीक न बनी हो सूरत
तो पोत देना कालिख मेरे चेहरे पर
अफ़सोस न होगा मुझे
बस भूल पर अपनी मुस्कुरा दूँगा
हंसी की भाषा तो तुम्हें आती होगी ...
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केस्च गूगल से साभार
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - भारतीय रेल के गौरवमयी १६० वर्ष पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeletebahut sundar rachna Nityanandji
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