नर्मदा से होकर
कोसी के किनारे से लेकर
हुगली नदी के तट तक
रेतीले धूल से पंकिल किनारे तक
भारत को देखा
गेंहुआ रंग , पसीने में भीगा हुआ तन
धूल से सना हुआ चेहरे
घुटनों तक गीली मिटटी का लेप
काले -पीले कुछ कत्थई दांत
पेड़ पर बैठे नीलकंठ
इनमें देखा मैंने साहित्य और किताबों से गायब होते
गांवों का देश भारत
दिल्ली से कहाँ दीखती है ये तस्वीर ...?
फिर भी तमाम राजधानी निवासी लेखक
आंक रहे हैं ग्रामीण भारत की तस्वीर
योजना आयोग की तरह ....
*मध्य प्रदेश से होकर बिहार ,बंगाल की यात्रा के बाद लिखी गई एक कविता
कोसी के किनारे से लेकर
हुगली नदी के तट तक
रेतीले धूल से पंकिल किनारे तक
भारत को देखा
गेंहुआ रंग , पसीने में भीगा हुआ तन
धूल से सना हुआ चेहरे
घुटनों तक गीली मिटटी का लेप
काले -पीले कुछ कत्थई दांत
पेड़ पर बैठे नीलकंठ
इनमें देखा मैंने साहित्य और किताबों से गायब होते
गांवों का देश भारत
दिल्ली से कहाँ दीखती है ये तस्वीर ...?
फिर भी तमाम राजधानी निवासी लेखक
आंक रहे हैं ग्रामीण भारत की तस्वीर
योजना आयोग की तरह ....
*मध्य प्रदेश से होकर बिहार ,बंगाल की यात्रा के बाद लिखी गई एक कविता
गूगल इमेज पर जाकर गाँव देखा और लिखी कविता.....
ReplyDeleteतभी महकती नहीं ऐसी कवितायें......
अनु
फिर भी तमाम राजधानी निवासी लेखक
ReplyDeleteआंक रहे हैं ग्रामीण भारत की तस्वीर
योजना आयोग की तरह ....
very nice nityanandji
आज की ब्लॉग बुलेटिन १० मई, मैनपुरी और कैफ़ी साहब - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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