खूब लिखीं
हमने कविताएँ
बहुत गाये गीत
कहीं कुछ
बदलाव न आया
बिछड़ गये मन मीत |
सबने पढ़ी
सबने सुनी
कुछ सपनों की चादर बुनी
वही पुरानी रीत
कुछ दिनों में
भूल गये सब
मेरा रुदन गीत |
इतिहास कुछ
बदल न सका
कोई पत्थर
तोड़ न पाया
टूट चुकी है
हिम्मत की रीढ़
यूँ ही बढ़ती जा रही है
मेरे शहर की भीड़
खूब लिखीं हमने कविताएँ
खूब गाये हैं गीत .................||
हमने कविताएँ
बहुत गाये गीत
कहीं कुछ
बदलाव न आया
बिछड़ गये मन मीत |
सबने पढ़ी
सबने सुनी
कुछ सपनों की चादर बुनी
वही पुरानी रीत
कुछ दिनों में
भूल गये सब
मेरा रुदन गीत |
इतिहास कुछ
बदल न सका
कोई पत्थर
तोड़ न पाया
टूट चुकी है
हिम्मत की रीढ़
यूँ ही बढ़ती जा रही है
मेरे शहर की भीड़
खूब लिखीं हमने कविताएँ
खूब गाये हैं गीत .................||
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