हाँ, मेरी प्रेम कविताएँ
बहुत सपाट होती है
आड़ी-तिरछी,
उबड़-खाबड़ तरीके से
नहीं लिख पाता
मैं प्रेम को |
मेरी प्रेम कविताएँ मोहताज नहीं
किसी
अलंकार और बनावटी शिल्प के |
बहुत सपाट होती है
आड़ी-तिरछी,
उबड़-खाबड़ तरीके से
नहीं लिख पाता
मैं प्रेम को |
मेरी प्रेम कविताएँ मोहताज नहीं
किसी
अलंकार और बनावटी शिल्प के |
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "भूली-बिसरी सी गलियाँ - 10 “ , मे आप के ब्लॉग को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभार
Deleteसुन्दर शब्द रचना
ReplyDeleteनव बर्ष की शुभकामनाएं
http://savanxxx.blogspot.in
धन्यवाद आपका
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