Saturday, March 16, 2019

यह बर्फ के पिघलने का वक्त है

सर्दी सिकुड़ रही है
और हमारी अभिव्यक्ति जमने लगी हैं
जैसे हमारी ज़ुबान पर कोई भारी वस्तु रख दी गई हों
कीचड़ से चिपक गई हों जैसे
आंखों की पलकें
बाज से लड़ती चिड़िया की कहानी
अब हम नहीं सुनाते अपने बच्चों को
विज्ञान के प्रवेश परीक्षा से पहले बच्चों को मंदिर ले जा रही हैं माएं
हमने मां को भी तो गाय बना दिया है
कंप्यूटर का छात्र शिवलिंग पर दूध उड़ेल आया है सोमवार सुबह
हिंदी साहित्य की एक शोधार्थी ने सोलह सोमवार का निर्जला उपवास के बाद
अब किसी संतोषी माता की खुशी के लिए
कुछ बच्चों को गुड़ चना खिला रही है
एक गाय प्लास्टिक चबाती हुई दिल्ली की भीड़ भरी सड़क के बीच खड़ी होकर रंभा रही है
हममें से किसी ने उसे नहीं बताया कि
अखलाक, जुनैद जैसे अनेक युवाओं की
हत्या कर दी गई है उसके नाम पर
हत्यारों ने खुद को गौ रक्षक बताया है
और हत्या को वध कहा है
इसी तरह गांधी की हत्या कर उसे वध कहा था इनके पूर्वजों ने
और अब वे गांधी के पुतले को भी गोली मार रहे हैं
खून से रंगे हाथों की सफाई के लिए
पैर भी धोए गए ताकि
तस्वीर में कैद हो जाएं उसकी निर्मलता
डिजिटल युग में तस्वीर ही तो बोलती है
विश्वविद्यालयों में छात्र लाठी खा रहे हैं
मैं राजा के सांड की तलाश में सड़क पर भटक रहा हूं
इस बीच हरामी ने बनारस उजाड़ दिया ।
यह बर्फ के पिघलने का वक्त है ।

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