एक लंबे अन्तराल के बाद
आज फिर
तुम मुझे याद आए
अचानक .....
पर क्या
सच में भूला था तुम्हें ?
मेरी आदत नही
भूले हुए को याद करना
कब भूला मैं
तुम्हें
कब तुम याद आए मुझे ?
इस भूलने और याद आने के दरमियाँ
मैं जीता रहा
ऊम्र बीतती रही हमारी
किंतु,
हर वक्त
एक परिचित चेहरा रहा मेरे आसपास
हर पल
उसे ही आँखों में लेकर
भटकता रहा
भीड़ में तन्हा
एक महानगर में ।
आज फिर
तुम मुझे याद आए
अचानक .....
पर क्या
सच में भूला था तुम्हें ?
मेरी आदत नही
भूले हुए को याद करना
कब भूला मैं
तुम्हें
कब तुम याद आए मुझे ?
इस भूलने और याद आने के दरमियाँ
मैं जीता रहा
ऊम्र बीतती रही हमारी
किंतु,
हर वक्त
एक परिचित चेहरा रहा मेरे आसपास
हर पल
उसे ही आँखों में लेकर
भटकता रहा
भीड़ में तन्हा
एक महानगर में ।
ये कविताएं अपने समय की तल्ख सच्चाई को बेबाकी से बयान करती हैं। चारमीनार खडा है जैसी संवेदनशील कविता तो देर तक ध्वनित होती रहती है। मुझे लगता है, कवि को इस राजनीतिक मुहावरे से जल्दी बाहर आ जाना चाहिये। अपने अनुभव और मन की कोमल इच्छा ओं के पास रहकर वे लिख सकें तो शायद कुछ बात बने। बाकी जो व्यंग्य और सात्विक गुस्सा इन कविताओं में झलकता है, वह एक सच्चे इन्सान का मन है। हां कुछ शब्दों की वर्तनी में हैदराबादी हिन्दी का असर है, उसे जरूर ठीक कर लेना चाहिये, जैसे किउन को क्यों लिखें तो बेहतर।
ReplyDeletewah wah...ati sundar...
ReplyDeleteसमय का पहिया घूमते रहता .है ...
ReplyDeleteऔर यादे ..जिन्हें भुलाना चाहते भी है अगर कोई ...
तो नहीं भुला पाते ..
क्योकि ...यादे ...मष्तिष्क के किसी तलहट्टी में छिपी होती है /
beautiful