मेरे आंगन में
अब चिड़िया नहीं आती
दाना चुगने
शायद उन्हें पता चल गया है
महंगाई का स्तर
और मेरी हालात का .
मेरे आंगन में
नीम का जो पेड़ था
पर्णहीन हो चुका है अब
सदा के लिए
मेरा आंगन अब
बंज़र हो चुका है .
झरने अब गीत नहीं गाते
पहाड़ो से गिरना रुक गया है उनका
उनके पहाड़ों पर
अब आदमी का बसेरा है .
तालाबों के मेढकों ने
"वीजा" पा लिया है
किसी दुसरे देश का
अब वे अप्रवासी कहलाते हैं .
Sunday, March 14, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
-
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
-
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
-
बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
बहुत सुन्दर मनुष्य की करनी को बहुत ही सुन्दर सहज शब्दों में पिरोया है आपने ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मनुष्य की करनी को बहुत ही सुन्दर सहज शब्दों में पिरोया है आपने ......
ReplyDelete