बड़ी -बड़ी कम्पनिओं का
आज देश में भरमार है
फिर भी लोग बेरोजगार है .
अनाज के गोदाम
भरे पड़े है
फिर भी
गरीब भूखा पड़ा है
अदालत भी है
जज भी है
किन्तु न्याय कोसों दूर है
सेना भी , पुलिस भी है
फिर भी भय
दिल में बैठा है
गली का नल
सूखा पड़ा है
बोतल में कैद
जल बाज़ार में है .
विद्यालय आज
शापिंग माल है
शिक्षक आज
दुकानदार है
रवि की तरह
कवि भी आज
मौसम समझ कर
बाहर झांकता है
किसान यहाँ
मर रहे हैं
मंत्री जी
क्रिकेट खेल रहे हैं
उदास नैनों से धरती -
आकाश की ओर
देख रही है
चुनाव से पहले
पत्रकार सब
पैसे लेकर बिक गये थे
चर्चा नेताजी की करते - करते
उनके कलम सूख गये थे .
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युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
Fascinating! Very beautiful. MJB
ReplyDeleteI seem to be spreading this book around a lot today. But there is a child's book called "Half a World Away" by "Child's Play". It is about the world turning their back on the children in need, in "the land of the purple cloud". It gives hope because the other children in the world hear their cries and take action. Very powerful book written for children. You can find it on Amazon or follow the link on my blog, it will lead you there. Either way, it is one I think you would like and all children should read!
ReplyDeleteदेश का यही हाल है ...!
ReplyDeleteजनाब ये अरस्तु का लोकलंत्र है। ये तो होना ही था।
ReplyDeletejust write like that I hope your pen will not dry.
Dr. Abhijeet joshi
assistant professor
Dept. Of Philosophy University of Hyderabad