Saturday, December 3, 2011

तीन कवितायेँ

१.पतंग  

नीले आकाश में
जब उड़ती हैं
रंगीन पतंगें
और परिंदों का एक झुंड
लगाता है होड़

खूब ढील देता हूँ
मैं अपनी पतंग की डोरी को
छूने  को --
खूब -खूब  ऊंचाई

पर परिंदे माहिर हैं
उड़ान भरने में
जीत जाते हैं ..वे

सीख लेता हूँ  फिर से
ज़रूरी है माहिर होना अपने फन में
जीत के लिए .........


.आंसू  न बहाना 


मेरे शव पर
आंसू  न बहाना
क्योंकि--
पानी में सड़ कर फूल जाता है शव

महज़ औपचरिकता
के नाम पर
मत आना
अंतिम दर्शन को
हंस पड़ेंगे सभी रोते -रोते
तब --
मेरी  मृत देह
सह न पायेगा
तुम्हारा उपहास

बस दबे पावं आकर
ले जाना  जो कुछ
पड़ा है तुम्हारा
मेरे उस कमरे में .....

३. देर होने से पहले 


मेरे पास नहीं है
तुम्हारा पता
और मुझे
खुद का खबर नहीं
पर मैं खोया हुआ नहीं हूँ
ज़मीन की बात है
हूँ  कहीं  इसी जमीं पर
ख़ोज सको तो ख़ोज लो
देर होने से पहले ...........


7 comments:

  1. तीनो बहुत ही सुन्दर..!

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  2. tino hi bahut sundar hai....

    www.poeticprakash.com

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  3. बहुत अच्‍छी कवितायें हैं।

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  4. इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.

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  5. तह दिल से आप सभी का शुक्रिया ...............

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  6. sundar kavitayen bhai....vishesh roop se doosari wali kavita.....मेरी मृत देह
    सह न पायेगा
    तुम्हारा उपहास
    prem ki intaha hai in panktiyon main....badhai.

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  7. सुंदरतम..... 'देर होने से पहले ' बेहद प्रभावि‍त करती है

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