Sunday, December 9, 2012

मुस्कुराते हैं खिले हुए कमल

पगडंडियों से गुजर कर 
आता है मेरा गांव 
तालाबों के बीच 
फलदार दरख्तों से घिरा हुआ 
मिट्टी का घर 
रोज लिपा जाता है गोबर से 
मुस्कुराते हैं खिले हुए कमल 
मछलियाँ करती है जलक्रीड़ा 
मिमियाते हैं बकरी के बच्चे 
विशुद्ध हवा के बीच 
कच्चे रास्ते से गुजरते साईकिल की घंटी की आवाज़ से
दौड़ पड़ते हैं बच्चे
बरफ वाला आया बरफ वाला आया
माँ से मांगते हैं पैसे

इन स्मृतियों के साथ बीत जाता है
मेरा दिन
महानगर की भीड़ में ....

7 comments:

  1. ये स्मृतियाँ ही तो हैं जीने का सबब....

    सुन्दर एहसास,
    अनु

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  2. ...कुछ ऐसा ही अहसास हमारा भी है !

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  3. इन स्मृतियों के साथ बीत जाता है
    मेरा दिन
    महानगर की भीड़ में ....!!

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  4. सुन्दर एहसास, गाँव याद आ गया। साधुवाद!!

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  5. ek aur baat isme jodna chahungi btiyati hain ganw ki aurtein baithkar kisi ke chabutae par ,,dhl jata hai din pura unka ,,yunhi baat karte kewal ,,,surj k dhlte hi chl pdti hain sukhi lakdiyon ke sath ,,pet bharne pariwaar ka apne...

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  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...